एक ही रूट पर चलने वाली 2 ट्रेनों में क्यों होता है अलग-अलग किराया ? जानिए कैसे निर्धारित होती है टिकट की कीमत

डेस्क : भारतीय रेलवे समय समय पर अपने यात्रियों के लिए अनेकों प्रकार की सुविधा लाता रहता है। ऐसे में आपने देखा होगा कि ट्रेन में अलग तरह की बोगियां होती है जिनका किराया अलग होता है, जैसे कि स्लीपर का किराया एसी कोच से कम होता है। वही जनरल डिब्बों में बैठकर जाने का किराया और भी कम होता है।

बता दें कि इंडियन रेलवे को इस बात का खासतौर पर ध्यान है कि भारत में हर प्रकार के लोग रहते हैं और सभी अपने हिसाब से सुविधा अनुसार पैसा खर्चना चाहते हैं, जिसके चलते रेलवे में अलग-अलग किराए जारी किए हैं। क्या कभी आपने सोचा है कि एक ही रास्ते पर एवं एक ही गंतव्य तक पहुंचाने वाली दो अलग-अलग ट्रेन के अलग किराए क्यों होते हैं? आज हम आपको इसी से जुड़ी जानकारी देने वाले हैं।

आखिर कैसे निर्धारित किया जाता है किराया ? बता दें कि इस वक्त भारतीय रेलवे में मेल ट्रेन, एक्सप्रेस ट्रेन एवं सर्विस ट्रेन शामिल है। कुछ ऐसी ट्रेनें भी है जिन का किराया का सिस्टम पूरी तरीके से अलग तैयार किया गया है, जैसे दुरंतो, वंदे भारत, गतिमान, हमसफर, शताब्दी, राजधानी, गरीबरथ, जनशताब्दी एवं अन्य कई स्पेशल ट्रेन।

ध्यान देने वाली बात यह है कि यहां पर किलोमीटर के हिसाब से रेल गाड़ी में बैठने का किराया फिक्स किया जाता है। इतना ही नहीं ट्रेन किस टाइप की है इस पर भी यह निर्भर करता है कि आखिर उसमें कितना किराया लगेगा। ऐसे में मिनिमम जनरल फेयर के साथ मिनिमम डिस्टेंस चार्ज, रिजर्वेशन चार्ज और जीएसटी भी लागू होता है। इन सभी चीजों को मिलाकर ट्रेन की टिकट का निर्धारण किया जाता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि सुपरफास्ट का किराया सिर्फ सुपरफास्ट ट्रेन में ही देना होता है।

अब समझते हैं कैसे होती है कैलकुलेशन

ट्रेन किलोमीटर के आधार पर किराए को निर्धारित करती है, इनमें 1-5 किलोमीटर, 6-10, 11-15, 21-25 से लेकर 4951-5000 तक की कैटेगरी शामिल हैं, जिस हिसाब से आपकी यात्रा फिट बैठती है उसमें रेलवे का सॉफ्टवेयर आपका टिकट जेनेरेट करके दे देता है।