देश के प्रधानमंत्री ने अपने जन्म दिवस के मौके पर हाल ही में मध्य प्रदेश की कूनो नेशनल पार्क में आठ चीतों को छोड़ा। इन सब को दक्षिण अफ्रीका के नामीबिया से प्रोजेक्ट चीता के तहत मंगवाया गया था। इनमें से पांच मादा और तीन नर चीता है। पुनः 2025-26 तक अफ्रीका से बारह या चौदह चीतों को भारत लाने की योजना बनाई जा रही है। चीता इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट में 38.70 करोड रुपए पर्यावरण वन और जलवायु मंत्रालय के मुताबिक आवंटित किया गया है जो कि भारत में चीतों के उन्नयन का कार्य करेगी।
1947 में भारत मे किया गया था आख़री चीते का शिकार कुछ वर्ष पूर्व मध्य पूर्व के देशों में काफी संख्या में चीते पाए जाते थे। भारत-पाकिस्तान रूस इन जगहों पर चीतों की संख्या काफी हुआ करती थी, लेकिन अब ईरान को छोड़कर एशिया के लगभग सभी देशों से ही चीता विलुप्त प्राय हो चुके हैं।
भारत ने भी 70 वर्ष पूर्व ही वर्ष 1952 में चिता को विलुप्त प्राय घोषित कर दिया था। पूर्व में महाराष्ट्र मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश छत्तीसगढ़ झारखंड उड़ीसा तमिलनाडु में काफी संख्या में पाए जाते थे। वर्ष 1947 में भारत के आखिरी तीन चीतों का शिकार कोरिया रियासत के अंतिम राजा महाराज रामानुज प्रताप सिंहदेव ने कर दिया था। इन तीनों चीतों का शिकार रामगढ़ इलाके में किया गया था। इन सब का सर आज भी राज महल में लगा हुआ है।
अकबर ने पाला था 9000 चीते को चीतों का संरक्षण और इसे पालने का शौक काफी पुराना रहा है। मुगल बादशाह अकबर के पास हजार चीते हुआ करते थे। वहीं कहीं जगह पर ऐसा भी कहा जाता है कि अकबर ने 9000 चीतों को अपने पूरे शासनकाल 1556 से लेकर 1605 के बीच में पाला था। रियासती चाहे बड़ी हो या छोटी चीजों को पालने का शौक सभी लोगों को था। अरब के देशों में आज भी काफी चीते रहते हैं।
यहां चीता के बच्चों को घर में पालना भी कानूनी है। चीता के बच्चों की बिक्री दस हज़ार डॉलर तक में होती है। भारत में आने वाले सभी चीते साउथ अफ्रीका से लाए गए हैं और इनकी खास वजह है कि इन दोनों जगह का मौसम और तापमान लगभग काफी हद तक मिलता जुलता है। जिस वजह से चीतों को भारत आने के बाद भी यहां की मौसम और परिस्थितियों में अनुकूल होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।