दुनिया भर में मनाई जा रही ईद , सामाजिक सौहार्द की बेमिसाल त्योहार का नाम है ईद-उल-फितर

न्यूज डेस्क : रमजान के पूरे तीस रोज़े रखने के बाद ईद-उल-फितर का त्योहार बड़ी अकीदत के साथ मनाया जाता है. इस्लामी कैलेंडर के अनुसार हिजरी सन ईस्वी के नौवें महीने का नाम रमजानुल मुबारक नाम है. इसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ अन्य धर्मों के मानने वाले लोग भी अपनी मन्नतों के पूरा होने पर रोज़ा रखकर अल्लाह की शुक्रिया अदा करते हैं. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस महीने में रोजेदार लगातार एक महीने तक सिर्फ भुखे प्यासे नहीं रहते हैं.

बल्कि इस दौरान सालों भर की आमदनी मे से जकात एवं सदका फितर निकाल कर गरीब-गुरबा, बेबा और बेसहारा लोगों के बीच मे तकसीम करते हैं. इसमें जात-बिरादरी की कोई बंधन नहीं होता है. सबसे पहले पड़ोसियों का हक माना जाता है. पड़ोस में रहने वाले हरेक ऐसे लोगों के बीच ईद-उल-फितर की नमाज़ अदा करने से पूर्व सदका फितर बांट दिया जाता है. ताकि वे लोग ईद की खुशियां मनाने से महरूम ना रह जाएं. इसलिए इसको समाजिक सौहार्द की बेमिसाल त्योहार भी कहा जाता है. खासकर रोजेदार तरावीह के बाद एवं इफ्तार से पूर्व जब दुआओं के लिए हाथ उठाते हैं तो उनके दिल में पूरी इंसानियत के लिए दर्द साफतौर पर झलकती है.

बीते दो वर्षों से रमजानुल मुबारक मे अकीदतमंद सामुहिक रूप से रोज़ा इफ्तार एवं तरावीह के साथ ईद-उल-फितर की नमाज कोरोना जैसी बबा के कारण अदा नहीं कर पा रहे हैं. बावजूद इसके इबादत मे कोई कमी नहीं आई है. रोजेदार पूरी दुनिया के दर्द को दिल मे समेटकर अपने अपने घरों के अंदर इबादत मे मशगुल रहकर पूरी दुनिया में अमन-चैन और खुशियों के लिए दुआएं कर रहे हैं. यही चीज ईद-उल-फितर को अन्य त्योहारों से अलग पहचान बनाती है. तीस रोजे के बाद जब सुबह की सुनहरी धुप की किरण जमीन पर फैलती है तो मानो धरती पर के तमाम मखलूक रोजेदारों को ईद की मुबारकबाद पेश कर रहा हो. सबसे पहले बच्चे उमंग और उत्साह से लबरेज़ होकर अपने हम उम्रों के साथ गले मिलकर ईद की मुबारकबाद पेश करते हैं तो वह क्षण वाकई हरेक को रोमांचित कर देता है. फिर एक दूसरे के घर पहुंच दुध और सेवैयांं खाकर आपसी तमाम गिले शिकबे को भुलाकर नई तरह से जिंदगी जीने का संकल्प इस त्योहार को महान बनाता है.