इन कारणों से आयुष मंत्रालय को लगानी पड़ी पतंजलि की कोरोना वाली दवा के प्रचार-प्रसार पर रोक

डेस्क : आयुष मंत्रालय ने पतंजलि द्वारा बनाई गई कोरोना की दवा को लेकर कल आपत्ति जाहिर की थी और कंपनी से तुरंत इस दवा के विज्ञापनों को बंद करने को कहा था। जिसके बाद कंपनी ने कोरोना की दवा के विज्ञापनों को बंद कर दिया है। दरअसल आयुष मंत्रालय का कहना है कि पतंजलि की और से कोरोना की दवा के बारे में मंत्रालय को सूचित नहीं किया गया था। कथित वैज्ञानिक अध्ययन के दावों की सच्चाई और विवरण के बारे में मंत्रालय को कोई जानकारी नहीं दी गई है। जिसकी वजह से मंत्रालय ने ये कदम उठाया है।

मंत्रालय की और से बयान जारी कर कहा गया है कि पतंजलि को इस बारे में सूचित कर दिया गया है कि दवा के इस तरह के विज्ञापनों जिसमें आयुर्वेदिक दवा शामिल हो। वो ड्रग एंड मैजिक रिमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन ) कानून, 1954 और कोरोना महामारी को लेकर केंद्र सरकार के निर्देशों के अंतर्गत आते हैं।

आयुष मंत्रालय ने पतंजलि से मांगी ये जानकारी आयुष मंत्रालय की और से पतंजिल से पूछा गया है कि दवा में किन घटकों का प्रयोग किया गया है और इन घटकों के बारे में विवरण दिया जाए। इसके अलावा आयुष मंत्रालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड से दवा के नाम और इस दवा को लेकर अध्ययन कहां या किस अस्पताल में हुआ है, किन प्रोटोकॉल का पालन किया गया है। ये सभी जानकारी भी मांगी है। मंत्रालय ने पतंजलि कंपनी से ये भी पूछा है कि कोरोना की दवा का सैंपल साइज क्या था, इंस्टीट्यूशनल एथिक्स कमेटी क्लियरेंस मिली है या नहीं, सीटीआरआई रजिस्ट्रेशन और अध्ययन से जुड़ा डेटा कहां है।

मांगी लाइसेंस की कॉपी मंत्रालय ने पतंजलि से उत्तराखंड सरकार के लाइसेंसिंग प्राधिकरण से दवा की लाइसेंस की कॉपी भी मांगी है और प्रोडक्ट के मंजूर किए जाने का ब्यौरा भी मांगा है। वहीं जब भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक प्रोफेसर बलराम भार्गव से पतंजलि के दावे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “मैं ऐसी किसी दवा पर टिप्पणी करना नहीं चाहूंगा। आईसीएमआर इस दवा से संबंधित किसी भी प्रयास में शामिल नहीं रहा।”

जांच पूरी होने तक लगी रहेगी रोक मंत्रालय की और से कहा गया है कि जब तक कोरोना की इस आयुर्वेदिक दवा से जुड़ी तमाम जांच पूरी नहीं कर ली जाती है। तब कर इस दवा के विज्ञापन पर रोक ही लगी रहेगी।।

बाजार में दवा लाने में लगता है समय केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सामान्य परिस्थितियों में दवा को बनाने में, उससे जुड़े क्लीनिकल ट्रायल को पूरा करने में और उसकी मार्केटिंग में तीन साल तक का समय लग जाता है। वहीं असामान्य परिस्थितियों में अगर जल्द दवा लाने की कोशिश की जाए तो एक नई दवा को बाजार में आने में दस महीने से एक साल का समय लगता है।’

दरअसल पतंजिल का दावा है कि उन्होंने इस साल जनवरी महीने में ये दवा बनानी शुरू की था। यानी कंपनी ने बेहद ही कम समय में ये दवा बनाई है और इसका क्लीनिकल ट्रायल भी पूरा कर लिया है। वहीं सीडीएससीओ के एक अधिकारी के अनुसार ”उनके विभाग को पतंजलि की इस दवा के क्लीनिकल ट्रायल की कोई सूचना नहीं थी।” हालांकि पतंजलि कंपनी के सीईओ आचार्य बालकृष्ण का ये दावा है कि एक थर्ड पार्टी की मदद से क्लीनिकल ट्रायल किया गया हैं। जिसमें100 प्रतिशत कोविड-19 के मरीजों को सही किया गया है। गौरतलब है कि पतंजलि ने मंगलवार को ‘कोरोनिल टैबलेट’ और ‘श्वासारि वटी’ नाम की दवाएं लॉन्च की थी और ये दावा किया है कि ये दवा कोरोना के मरीजों को सही कर देंगी।

इनपुट : न्यूज़ ट्रेंड