भारत के इस जंगल में मिला हजारों करोड़ के हीरों का खजाना, लेकिन इसके लिए काटने होंगे 2 लाख से ज्यादा पेड़

न्यूज डेस्क : पूरे विश्व में ऑक्सीजन को लेकर हाई तौबा मचा हुआ है। कोरोनाकाल में लोगों को पेड़ों की महत्ता और पर्यावरण के प्रति मानवीय भूल का एहसास हो रहा है। हाल ही 21 मई 2021 को चिपको आंदोलन के नेता सुंदर लाल बहुगुणा का निधन हो गया। पर्यावरण के प्रति सजगता, लगाव व पर्यावरण संरक्षण के जुनून की वजह से 2009 में भारत सरकार ने पद्म विभूषण की उपाधि से इन्हें नवाजा था। इनकी मृत्यु की वजह कोरोना थी। हालांकि कोरोना में लाखों लोगों की जाने गई वजह कई में एक थी “ऑक्सिजन की कमी”। ऑक्सिजन की कमी की इतनी बड़ी क़ीमत देने के बाद भी कहा से ये तार्किक होगा की इसके मूल स्रोत जंगलों पेड़ो को काट दिया जाए हीरा खनन के लिए। भारत के मध्यप्रदेश राज्य का बक्सवाहा का जंगल काफी चर्चा में चल रहा है। हर सोशल मीडिया पर #savebuxwahajungle काफी ट्रेंडिंग है।

वजह क्या है अचानक से खबरों में आने की मध्यप्रदेश सरकार ने 29 वर्ष पहले बक्सवाहा में बंदर प्रोजेक्ट शुरू किया जिसके तहत जंगल का सर्वे किया जाना था। दो साल पहले इसी सरकार ने इस जंगल की नीलामी की और आदित्य बिड़ला ग्रुप के एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने खनन के लिए खरीदा। 62.64 हेक्टयर ज़मीन को सरकार ने इस कंपनी को 50 वर्षो के लिए लीज़ पर दिया। जिसमें हीरा भंडारित है। लेकिन बाद में कंपनी ने 382.131 हेक्टयर जंगल मांगा है मलबा डंप करने के लिए।

इस प्रोजेक्ट में कंपनी 2500 करोड़ रुपये का निवेश कर रही है। जिस से सरकार को काफी लाभ हो शायद। पर सोचनीय ये मुद्दा है कि कहाँ तक सही है ऑक्सिजन की कमी से होने वाले महाविनाश को देखने के बाद भी इस स्तर पर जंगल का सफाया करना। वन विभाग के अनुसार ढाई लाख से भी ज़्यादा पेड़ हीरा निकालने के लिए काटे जाएंगे। इन पेड़ों में काफी महंगे पेड़ जैसे पीपल, जामुन, महुआ आदि हैं। बिड़ला कंपनी ने पहले भी लीज़ पर लेकर 800 से ज्यादा पेड़ काट डाले थे। अनुमानतः बक्सवाहा के जंगलों की जमीन के नीचे 50 हज़ार करोड़ रुपये के हीरे हैं।

मुद्दा सिर्फ़ पेड़ों की कटाई कर हीरा को निकालने का नहीं वरन जैव विविधता को इतने बड़े पैमाने पर नुकसान पहुचाने का भी है। बक्सवाहा काफी सघन वन का क्षेत्र है। 2017 में जिओलॉजी एंड माइनिंग एम पी और रिओरितो कंपनी की रिपोर्ट से इस क्षेत्र में बहुत से जानवर भी रह रहे हैं और 2020 कि नई रिपोर्ट में डी एफ ओ और सी ए एफ ने कहा कि कोई भी वन्य जीव जंगल में नहीं है। इतने सघन वन में एक भी वन्य प्राणी का न होना असंभव सा लगता है।

रिपोर्ट कुछ भी कहे पर जंगल का कटना न सिर्फ वन्य प्राणियों बल्कि मनुष्यों के ऊपर भी बड़ा संकट खड़ा करेगा। इंडियन कॉउन्सिल ऑफ फारेस्ट रिसर्च एंड एडुकेशन ने यहाँ एक पेड़ की औसत उम्र 50 वर्ष मानी है। इसके मुताबिक 50 वर्ष में एक पेड़ 50 लाख कीमत की सुविधा देता है और इन 50 सालो में एक पेड़ 23 लाख 68000 रुपये की कीमत का वायु प्रदूषण कम करता है। साथ ही साथ भू क्षरण नियंत्रण और उर्वरता के लिए भी काम करता है।

सबसे अहम सवाल अब जंगल ज़रूरी या हीरा?? अगर हीरे के लिए पेड़ काटा जाएगा तो सूखे और पानी की किल्लत की मार झेलता मध्यप्रदेश का ये इलाका और त्रासदी झेलने पर मजबूर न हो जाए। हालांकि इसका विरोध भी किया जा रहा है कुछ समाजसेवी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दे रखी है। 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है इसी दिन देश भर के कई सारे पर्यावरणविद इस प्रोजेक्ट के विरोध के लिए छतर पुर जाएंगे।

सोशल मीडिया की वजह से #savebuxwaha काफी चलन में आ चुका है। औऱ ज़मीनी स्तर पर भी कई सारे लोग इसका विरोध कर रहें हैं। प्रकृति के अमूल्य धरोहर को इस तरह नुकसान पहुचाना आने वाली पीढ़ियों के लिए विश्वाघात करने जैसा है। समझना जरूरी है कि पेड़ो की कटाई की भरपाई न सिर्फ मुश्किल वरन असंभव है। वन्य प्राणियों के घर उजाड़ कर फायदा देखना असभ्यता को दिखाता है। यह एक निन्दनीय कृत है।