क़िस्त न चुकाने पर बैंकों का वाहन उठाना अपराध नहीं : सुप्रीम कोर्ट

डेस्क : सुप्रीम कोर्ट की तरफ से महत्वपूर्ण फैसला लिया गया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कर्ज की किस्ते पूरी होने तक वाहन का मालिक फाइनेंसर ही रहेगा। अगर किस्तों में डिफॉल्ट पाए जाते हैं तो फाइनेंसर वाहन का कब्जा ले भी सकता है। इसमें कोई अपराध नहीं माना जाएगा।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता के अंदर तीन जजों के पैनल की व्यवस्था में यह फैसला लिया गया जिसमें फाइनेंसर की सबसे पहले अपील स्वीकार कर ली गई और फिर राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग द्वारा लगाया गया जुर्माना भी रद्द कर दिया गया, साथ ही उपभोक्ता अदालतों ने वाहन खरीददार से वाहन बिना उचित नोटिस के खोंसने पर तथा उसे क़िस्त का समय ना देने पर ₹2,23,000 का हर्जाना भरने का आदेश जारी करा था।

यह मामला 2003 का है जब राजेश तिवारी जो की आंबेडकर नगर के रहने वाले हैं, उन्होंने महिंद्रा की मार्शल गाड़ी फाइनेंस करवाई थी। इसके लिए उसने ₹1,00,000 का पेमेंट करा था और लगभग ₹3 फाइनेंस करवाए थे। इसके तहत उसकी महीने की ₹12531 की किस्त बनी थी। तिवारी ने 7 किस्ते दी थी लेकिन इसके बाद वह किस्त नहीं दे पाया था या कहे तो वह किस्त देने में असफल रहा था कंपनी ने 5 महीने का इंतजार करा और फिर उसके बाद उसकी गाड़ी उठा ली इसके खिलाफ तिवारी ने जिला उपभोक्ता अदालत में केस दर्ज करा था।