न्यूज डेस्क: गुरुवार को बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) ने फाइनल रिजल्ट जारी कर दिया है, इस 65वीं बीपीएससी (BPSC) में रोहतास के गौरव सिंह टॉपर बने हैं, वहीं सेकेंड टॉपर चंदा भारती लड़कियों में टॉपर हैं। इस साल परीक्षा में कुल 423 कैंडिडेट का फाइनल सेलेक्शन हुआ है। लेकिन इसी बीच आप लोगों को एक ऐसे शख्स के बारे में बताएंगे। जो की इस बार के 65 वीं परीक्षा में 165 वां रैंक हासिल किया है।
कहानी बड़ा ही दिलचस्प है, दरअसल 165 वां रैंक हासिल करने वाले दिलीप किसी रिच फैमिली से नहीं आते है। बल्कि, उनके पिता देव कुमार मेहता अंछा मोड़ पर सब्जी बेचते हैं। अभी ओके हैं तो एक छोटा किसान है, अपने ही खेत में सब्जी उगाकर बैक्जट थे।और किसी तरह पैसे बचाकर बेटे को पढ़ाने का प्रयास करते रहे। इनकी मां मीरा देवी हाउसवाइफ है, जबकि एक और भाई रॉबिन्स कुमार जनरल परीक्षा की तैयारी कर रहा है।
बताते चलें कि दिलीप मूल रूप से औरंगाबाद जिले के दाउदनगर प्रखंड जागा बीघा गांव से बिलॉन्ग करते हैं। दिलीप बताते है “उनके चाचा सेक्शन इंजीनियर राम कुमार का उनके जीवन की सफलता में बड़ा योगदान है। वह बचपन से ही प्रेरित करते रहे और दिशा निर्देश देते रहे थे। दिलीप ने बताया कि मैट्रिक तक कादरी उच्च विद्यालय में पढ़े और उसके बाद 11 वीं एवं 12 की पढ़ाई वाराणसी स्थित सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल में की। इसके बाद ग्रेजुएट एवं पोस्टग्रेजुएट दिल्ली विश्वविद्यालय से किया।
पिछली बार बीपीएससी में 2 अंक से चूक गए थे:
आज उन्होंने बताया 64 वीं BPSC की परीक्षा में दो अंक से पिछड़ गए थे। तब उनके ही गांव के बलवंत कुमार सफल होकर बीडीओ यूं कहें तो प्रखंड विकास पदाधिकारी बने थे। आगे बताते है यह चौथी बार कोशिश थी, लेकिन गंभीरता से एक साल दिल्ली में रहकर तैयारी की। तब जाकर इस बार उन्हें सफलता मिल पाई। बीते 6 माह से वह जागा बीघा अपने पैतृक घर पर ही हैं। अपनी पीढ़ी के लोगों के लिए उन्होंने कहा कि अपने ऊपर विश्वास करें। लक्ष्य के प्रति समर्पित रहकर तैयारी करें। कहा कि सिलेबस के अनुसार स्मार्ट स्टडी करें। इसी से सफलता मिलेगी।
पिता छोटा-मोटा खेती कर सब्जी बेचते हैं:
बता दें कि दिलीप के इस सफलता से पूरे गांव में हर्ष का माहौल है। लोग यह कहते नहीं थक रहे हैं कि एक सब्जी वाले के बेटा भी बीपीएससी निकाल सकता है। लोग दिलीप कुमार का उदाहरण देकर अपने पुत्रों को बता रहे हैं कि मन से यदि तैयारी की जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है नौकरी भी मिल जाती है। आसपास के लोगों ने भी बताया कि दिलीप कुमार के पिता ने अपने बच्चों की पढ़ाई में कोई कमी नहीं होने दी। वह दिन-रात बच्चों की पढ़ाई के लिए मेहनत किया करते हैं। सुबह अपने खेतों में काम करते हैं और शाम में सब्जी बेचा करते हैं।