आखिर रामपुरी चाकू इतना चर्चित क्यों है? आज जान लीजिए सब कुछ..

डेस्क : हथियारों के लिए कै कोड वर्ड्स इस्तेमाल किए जाते हैं. कुछ तो बड़े ही मशहूर है जैसे – कट्टा, रामपुरी, छप्पन, घोड़ा, वगैरह. कई बार इनकी अवैध खरीद-फरोख्त और तस्करी की खबरें भी सामने आती रहती हैं.

दिल्ली पुलिस ने हाल ही में 5 लोगों को गिरफ्तार किया है जिनके पास से 14053 बटन वाले चीनी चाकू बरामद किए गए. बताया गया कि चीन से ये चाकू भारत लाए जाते थे और फिर यहां अवैध रूप से ऑनलाइन बेचे जा रहे थे. 18 जुलाई को इस रैकेट का भंडाफोड़ हुआ, जब एक पीसीआर कॉल के जरिए पुलिस को दिल्ली के सीआर पार्क में मिले एक लावारिस कूरियर के बारे में बताया गया. 50 से ज़्यादा बटनदार चायनीज चाकू इसमें थे. पुलिस ने इसी पहले सुराग के जरिए गुत्थी सुलझा ली.

पकड़े गए ये चाइनीज चाकू जिन्हें देसी भाषा में ‘रामपुरी’ भी कहा जाता है. ये पहले रामपुर में बनते थे. फिर धीरे-धीरे चीन से आ रहे चाकुओं ने बाजार में रामपुरी की जगह ले ली. आज बताएंगे फेमस रामपुरी चाकू की कहानी. साथ ही इसके बॉलीवुड मूवीज में प्रचलन, चाक़ू बनाने की कला और इसके चाइनीज सब्स्टिट्यूट और इन दोनों के फर्क के बारे में.

दुनिया के सबसे पुराने हथियारों में से छुरी-चाकू एक हैं. लोहार इन्हें सदियों से बनाते आए हैं. ये हथियार अलग-अलग सभ्यताओं और उनकी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते माहिर कारीगरों की कला का उदाहरण हैं. ऐसा ही एक खूबसूरत कारीगरी है रामपुर का चाकू. जी हां, वही ‘रामपुरी’ जो अक्सर 60 और 70 के दशक की फिल्मों के विलेन्स के पास देखा जाता था.

काफी समय से हिंसक प्रवृत्ति से जोड़कर देखे जाने वाले ये चाकू भारतीय कृति की एक अनूठी मिसाल हैं. इसके हत्थे पर कभी मोर, कभी मछली और भी कई बहुतेरे डिज़ाइन लिए ये चाकू अपने बनने की कहानी खुद सुनाते नज़र आते हैं. मानो जैसे कह रहे हों कि इतनी संजीदगी से बनाई गई चीज केवल हिंसा के लिए तो इस्तेमाल नहीं की जा सकती है.

इन्हें इनकी बेहतरीन कारीगरी और इनकी कॉम्प्लेक्स बनावट ही ख़ास बनाते हैं. पूरे तरीके से यह हाथ का काम होता है. रामपुरी चाकू के तीन हिस्से होते हैं जिनमें हत्था, कमर और ब्लेड. इस चाकू में स्प्रिंग, बोल्ट और लॉक भी होता है. सामान्य तौर पर ये स्विच-ब्लेड प्रकार का होता है, जिसके ब्लेड की लम्बाई 9 से 12 इंच के बीच होती है.

वर्तमान में रामपुरी चाकू बनाने की कला और उससे जुड़े खूबसूरत इतिहास को जीवित रखने का काम कुछ चुनिंदा लोग ही करते हैं. उनमें से एक हैं, उत्तर प्रदेश के रामपुर के रहने वाले यामीन अंसारी. जिन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि इन चाकुओं को बनाना एक कला है जिसमें पारंगत में होने में ही कई साल लग जाते हैं.

रामपुरी चाकू पहले के दौर में पूरे रामपुर में बनता था. लेकिन 1990 के बाद लगे बैन और समय ने काफी कुछ बदल दिया. बहुत से कारीगरों ने यह काम ही छोड़ दिया. वे अपने रोज़ी-रोटी के लिए दूसरे व्यवसाय पकड़ लिए.

यही वज़ह है कि सालों पहले काफी सफल रहा ये उद्योग आज के समय में विलुप्त होने की कगार पर है. जहां ऐसी छुरियां और चाकू कई-सौ कारीगर बनाते थे, वहीं उनकी संख्या आज मुट्ठी भर भी नहीं बची है. अब बस रामपुर के बाजार में रामपुरी चाकुओं की 2 दुकानें हैं, जिनके मालिक रामपुर की छवि को बचाने की पुरजोर कोशिश में जुटे हैं.