क्यों कुछ कारनामा भरा काम करने पर कहा जाता है ‘तुर्रम खां’- जाने कौन था यह शख्स

आपने अक्सर लोगों से कहते हुए सुना होगा ‘तुम्हारे जैसे तुर्रम खान बहुत आए और गए’, ‘अपने आप को बड़ा तुर्रम खां समझते हो’,। लगभग इसका मतलब ही आप जानते ही होंगे। जब कोई ज्यादा हीरोपंती करता है तो यह डायलॉग ज्यादातर लोग बोलते हुए नजर आते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि असम में या तुर्रम खान कौन था और क्यों इसका नाम लिया जाता है।

आपको बता दें कि तुर्रम खान कोई मामूली शख्स नहीं बल्कि अट्ठारह सौ सत्तावन में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई का एक हीरो था, जिस का असली नाम तुर्रेबाज खान था। बैरक में मंगल पांडे ने जिस आजादी की लड़ाई की शुरुआत की थी हैदराबाद में उसका नेतृत्व तुर्रम खान कर रहा था।

तुर्रम खान हैदराबाद में पैदा हुए थे। उनके शुरुआती जिंदगी के बारे में बहुत ही कम जानकारी है। 1857 की लड़ाई में तब उनका नाम सामने आया जब जमादार चिदा ख़ान को छुड़ाने के लिए ब्रिटिश रेजिडेंसी पर हमले की योजना बनाई। दरअसल, चिदा खान को विद्रोही सिपाहियों के खिलाफ दिल्ली कुछ करने को कहा गया था, लेकिन इस बात से उन्होंने इनकार कर दिया था।

निजाम अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की लड़ाई में साथ देगा सभी को उम्मीद थी, लेकिन वह दगाबाज निकला। जब अपने 15 सैनिकों के साथ चिदा खान समर्थन के लिए निजाम के पास पहुंचा तो धोखे से उसके मंत्रियों ने चिदा खान को ब्रिटिश रेजिडेंसी में कैद कर लिया।

इसके बाद तुर्रम खान ने अपने साथी मौलवी अलाउद्दीन के साथ मिलकर 5000 जांबाज लड़ाकू की सेना तैयार की। जिसमें कई अरब स्टूडेंट और विद्रोही शामिल थे। योजना थी कि अचानक से ब्रिटिश रेजिडेंसी पर हमला बोला जाएगा। तुर्रम खान को यकीन था कि अचानक हमले के कारण अंग्रेजों को संभालने का मौका नहीं मिलेगा। उसकी सहायता के लिए बब्बन खान और जय गोपाल दास ने रेजीडेंसी के पास दो मकान भी खाली कर दिए।

हालांकि तुर्रम खान केस प्लेन की भनक अंग्रेजों को लग चुकी थी। दरअसल निजाम के वजीर सलार गंज में गद्दारी कर अंग्रेजों को पहले इसकी जानकारी दे दी थी। बंदूक और तापों से लैस अंग्रेज तुर्रम खां का इंतज़ार कर रहे थे। तुर्रम खान ने अपने साथी मौलवी अलाउद्दीन और अन्य विद्रोहियों के साथ 17 जुलाई अट्ठारह सौ सत्तावन की रात को तलवारों और लाठी-डंडों के साथ हमला बोला। रात भर ताबड़तोड़ फायरिंग चलती रही और सुबह 4:00 बजे तक विद्रोहियों को अंग्रेजों ने बुरी तरह मात दे दी।

ब्रिटिशर्स के साथ हुई लड़ाई में कई विद्रोहियों ने अपनी जान दे दी। हालांकि अंग्रेज तुर्रम खान को पकड़ने में नाकामयाब रहे। लेकिन निजाम के मंत्री तुरब अली खान ने तुर्रम खान का पता अंग्रेजों को दे दिया और उन्हें असुर खाना के पास के जंगल में उन्हें पकड़ लिया गया। तुर्रम खान पर हैदराबाद कोर्ट में केस चला और उनसे उनके साथियों के बारे में बताने को कहा गया लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।

इस पर उन्हें काला पानी की सजा
दी गई और जीवन भर सड़ने के लिए अंडमान भेजे जाने की तैयारी की जाने लगी। जब तक मैं अंडमान भेजे जाते इसके पहले 18 जनवरी 1859 को अंग्रेजों की गिरफ्त से फरार हो गए। तुर्रम खान को पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने 5000 रुपए का इनाम रखा और सैनिक उन्हें पकड़ने के लिए कष्ट करने लगे। इसके कुछ समय बाद एक तालुकदार मिर्जा कुर्बान अली बेग ने धोखे से तुपरन के जंगलों में तुर्रम खान को मार दिया।

इतिहासकारों की मानें तो तुर्रम खां के शव को रेजीडेंसी में पेड़ से नंगा लटका दिया गया था। आपको बता दें कि भारत सरकार ने उनके नाम पर एक सरल का नामकरण भी किया है जो हैदराबाद में यूनिवर्सिटी कॉलेज फॉर विमेन के पास तुर्रेबाज खन रोड स्थित है।

अब आपको समझ आ गया होगा कि तुर्रम खान एक वीर योद्धा था। जिसने अंग्रेजो के सामने डट कर उनका मुकाबला किया और अपने घुटने नहीं टेके। अब अगर कोई आपको तुर्रम खान कहता है तो इसे अपनी खुशकिस्मती समझिए।