सारी गाड़ियों के टायर का रंग काला ही क्यों होता है ? यदि किसी और रंग का हुआ तो क्या हैं इसके नुकसान जानें

डेस्क : ऊपर वाले ने और प्रकृति ने मिलकर इस दुनिया को बेहद ही रंग-बिरंगा बनाया है। इतना ही नहीं इंसान ने भी इस दुनिया की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए अपनी जिंदगी और आसपास की चीजों में खूब रंग घोला है लेकिन आपको बता दें जब से गाड़ियों का निर्माण हुआ है तब से लेकर आज तक सड़क पर दौड़ती गाड़ियों के टायर काले रंग के ही बनाए जाते हैं। ऐसा क्यों होता है आज हम आपको वही बताएंगे।

जब शुरुआती दिनों में टायर बनते थे तो वह प्योर रबर के जरिए बनाए जाते थे, ऐसे में वह टायर जल्दी घिस जाते थे और जल्दी खराब हो जाते थे। उसके बाद तकनीक विकसित हुई और टायर में कार्बन एवं सल्फर का इस्तेमाल किया जाने लगा। वैसे तो रब्बर का कलर काला नहीं होता लेकिन जैसे ही इस में सल्फर और कार्बन मिलाते हैं तो इसका रंग पूरी तरीके से काला पड़ जाता है।

अब आपके मन में इच्छा हो रही होगी कि आखिर रबर किस रंग में आता है तो आपको बता दें की रबर हल्के गुलाबी रंग में आता है लेकिन जैसे ही इस में कार्बन मिलता है तो यह मजबूत हो जाता है और इसका रंग काला पड़ जाता है। एक आम रबड़ का टायर 8000 किलोमीटर तक चल सकता है लेकिन जब इसमें कार्बन मिला दिया जाता है तो या 1 लाख किलोमीटर तक जाता है।

वैसे तो बच्चों की छोटी साइकिल में रंगीन टायर हमें देखने को मिलते हैं लेकिन आपको बता दें कि बच्चों को अपनी साइकिल पर ज्यादा दूर और वजन लादकर नहीं चलना होता है जिसके चलते उनकी साइकिल के टायर को रंगीन बनाया जाता है। यदि आप किसी बड़ी साइकिल, रिक्शा से लेकर ट्रक तक नजर घुमाएं तो आपको हमेशा उनके टायर काले रंग के ही नजर आएँगे। इसका सीधा मतलब यही है कि उनमें कार्बन और सल्फर मिलाया गया है ताकि वह मजबूत हो जाए और ज्यादा से ज्यादा दूरी को तय कर सके।