डेस्क : ट्रेन में आने जाने वाले यात्रियों के लिए हर कोच में टॉयलेट बना हुआ होता है। लेकिन इंजन में सफर कर रहे ड्राइवर के लिए कोई टॉयलेट मौजूद नहीं होता ऐसे में दिमाग में यह सवाल आता है कि आखिर ट्रेन का ड्राइवर लघुशंका को ख़त्म करने के लिए जाता कहा है ? इस वक्त भारत में इन ट्रेनों को चलाने के लिए 70 हजार ड्राइवर नौकरी कर रहे हैं।
एक ड्राइवर की ड्यूटी लगभग 10 घंटे की होती है, और इसमें यह पाया गया है की औसतन ड्राइवर को अपना पेशाब दबाकर ही ट्रेन को चलाना होता है। 45 की उम्र में ही ज्यादातर ड्राइवर का पेट बाहर की ओर निकल जाता है और वह गंभीर बीमारियों से लड़ते रहते हैं। आपको बता दें की ट्रेन का ड्राइवर इंजिन को छोड़कर, इंजिन से दूर कभी नहीं जा सकता। यदि वह ऐसा करता है तो उसको अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है। अब ना ही तो ट्रेन का ड्राइवर पैसेंजर बोगी में जा सकता है और ना ही वह ट्रेन से उतरकर यह काम कर सकता है, यदि वह ट्रेन को कहीं भी रोकेगा तो वीडियो बनने का ख़तरा बना रहेगा।
अब यदि ट्रेन के ड्राइवर को कहीं जाना हो तो वह कहा जाए ? इस स्थिति में उसको अगले स्टेशन पर एक i am not avail का सन्देश देना होता है। इसके बाद फिर कुछ देर के लिए ट्रेन के इंजन को रोककर ड्राइवर आसानी से दुसरे स्टेशन पर पेशाब या शौंच के लिए जा सकता है।