Desk : रुपया और डॉलर के मूल्य में बदलाव आर्थिक प्रणाली के नतीजे होते हैं और यह नहीं सिद्ध करता कि किसी देश की अर्थव्यवस्था सबसे मजबूत है। डॉलर और रुपया के मूल्य के बारे में चर्चा करेंगे तो इससे अधिकांश आकस्मिक तथ्यों पर निर्भरता होती है। पहले भी डॉलर और रुपया के समान मूल्य होने का कोई इतिहास नहीं है। आधिकारिक रूप से, डॉलर अमेरिकी संघ की मुद्रा है और रुपया भारत की मुद्रा है।
वहीं रुपया के मूल्य को कमजोर करने का कारण कई हो सकते हैं। एक कारण यह है कि राष्ट्रीय मुद्रा के मूल्य में कमी हो सकती है, जो देश के वित्तीय स्थिति और अर्थव्यवस्था के परिणामस्वरूप होती है। विभिन्न कारकों जैसे विदेशी संबंध, उत्पादन और आपूर्ति, स्थानीय बाजार की स्थिति, राजनीतिक और आर्थिक नीतियों का प्रभाव भी हो सकता है। ये हो सकते हैं फ़ायदे – जब आयात सस्ता होता है, तो वस्तुओं और सेवाओं की खरीदारी भी सस्ती हो जाती है। यह अर्थात्मक परिवर्तन लग्जरी आइटमों को भी सस्ता बना देता है। उदाहरण के लिए, एक आईफोन सिर्फ 650 रुपये में खरीदा जा सकेगा। जब आयात सस्ता होता है, तो कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस जैसे उत्पादों के भी दाम कम हो जाते हैं। इनका उपयोग करने वाले सभी क्षेत्रों की कीमतें घटेंगी।
इसके अलावा, विदेश में पढ़ाई करना तुलनात्मक रूप से सस्ता हो जाएगा। विदेशी पर्यटन अब लाखों रुपये की जगह हजारों रुपये में हो जाएगा। ये हो सकते हैं नुकसान – जब आयात सस्ता होता है, तो निर्यात विभाग के लिए यह अधिक महंगा हो सकता है। विदेशी कंपनियां भारत में निवेश करने का मुख्य कारण होती है क्योंकि यहां सस्ता मजदूर मिलता है। अगर डॉलर और रुपया समान माने जाएं, तो विदेशी कंपनियों को यहां भी उसी मानक के अनुसार खर्च करना होगा जैसा उन्हें विकसित देशों में करना पड़ता है। इस प्रकार, वे अपने कारख़ानों को ऐसे देशों में स्थानांतरित कर सकती हैं जहां मजदूरी सस्ती होती है, जैसे चीन, फिलीपींस, आदि। इससे सेवा क्षेत्र पर गहरा असर पड़ेगा। भारत में जीडीपी का 60% हिस्सा सेवा क्षेत्र से आता है और यहां 27% रोजगार प्राप्त होता है। आईटी क्षेत्र इसमें महत्वपूर्ण योगदान देता है।
करेंसी की वैल्यू की अत्यधिक बढोतरी एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के लिए इतना अच्छा भी नहीं होता। खासकर ऐसे देशों के लिए जो निर्यात पर निर्भर हैं। भारत को विदेशी निवेश की आवश्यकता है और रुपये की मुद्रास्फीति के कारण यह निवेश काफी जोखिम में पड़ सकता है। इसलिए, कई अर्थशास्त्री इस मान्यता को ध्यान में रखते हैं कि भारत को अपनी मुद्रा को और दीवाल्यू करना चाहिए। यह निर्याती देशों को आकर्षित करने के लिए मुद्रास्फीति का उपयोग करती हैं।