डेस्क : अकबर और जहांगीर के दौर में मिर्जा गयासबेग अहम स्थान रखते थे। मुगल सामाज्य में उनकी काबिलियत को देखते हुए कई पदोन्नति दी गईं। शाही कारखाने की उसे अहम जिम्मेदारी देने के साथ एतमाद-उद-दौला की पदवी से भी सम्मानित किया गया। मिर्जा गयासबेग अपनी बेटी मेहरून्निसा की शिक्षा को लेकर काफी सावधान था। ऐसा कहा जाता है कि मेहरून्निसा सौन्दर्य के साथ तेज दिमाग की धनी थी। अकबर के बेटा जहांगीर उसकी खूबसरती पर मर मिटा था। वह शादी करना चाहता था, लेकिन यह अकबर को नामंजूर था। इसलिए अकबर ने मेहरून्निसा की शादी 1594 में एक एक व्यापारी अलीकुली खां से करा दी।
मुगल साम्राज्य के लिए अलीकुली खां काम करता था। उसने एक दिन शेर का शिकार किया और जहांगीर ने इस बात से खुश होकर उसे शेर अफगान की उपाधि दी। जब शहजादे सलीम यानी जहांगीर ने अकबर से व्रिदोह किया तो यह बात अलीकुली खां को पसंद नहीं आई और शहजादे का साथ छोड़कर वो अकबर के पास आया और विश्वासपात्र बन गया। यह वो दौर था जब मुगल साम्राज्य का इतिहास करवट बदल रहा था। राजमहल में पेश होने का आदेश अलीकुली खां जारी किया गया। लेकिन वह देरी से पहुंचा तो जहांगीर के करीबी कुतुबउद्दीन ने उसे सजा के तौर पर कैद करने की कोशिश की। आखिरकार कुछ समय के जद्दोजहद के बाद शेर अफगान की मौत हो गई।
अलीकुली खां की मौत के बाद उसकी पत्नी मेहरून्निसा और उसकी बेटी को राजमहल सुरक्षापर्वूक लाया गया। मेहरून्निसा को यहां राजमाता रुकैया सुल्तान बेगल की देखरेख में लगा दिया गया। फिर जहांगीर ने दोबारा एक लम्बे समय के बाद 1611 में नौरोज के मौके पर मीनाबाजार में मेहरून्निसा को देखा। इस बार वो इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उससे शादी ली। मेहरून्निसा को विवाह के बाद नूरजहां बेगम की पदवी दे दी। हालांकि समकालीन इतिहासकारों ने इस बात का जिक्र कभी नहीं किया कि शादी से अकबर को ऐतराज था या फिर अलीकुली की मौत का जिम्मेदार जहांगीर था। अकबर के ऐसा करने के पीछे कोई बड़ी वजह नहीं थी। अकबर ने अगर ऐसा किया होता तो साम्राज्य में उसके पति को नौकरी ही नहीं देता।
जब 1611 में नूरजहां की शादी जहांगीर से हुई, तब उनकी उम्र 43 साल थी। इस कदर बेगम के प्यार में जहांगीर पागल थे कि शासन करने और बादशाह के चिन्ह धारण करने का अधिकार तक नूरजहां को ही दे दिया था। जहांगीर की विलासिता जैसे-जैसे बढ़ती गई, वैसे-वैसे नूरजहां के रुबते में बढ़ोतरी होती गई। इतना ही नहीं, नूरजहां के भाई आशफ खां को भी खाने सामां का पद दिया गया और नूरजहां ने आशफ खां की बेटी की शादी जहांगीर के तीसरे बेटे खुर्रम से कराई। इस तरह नूरजहां की ताकत में इजाफा हुआ और एक गुट नूरजहां मंडली के नाम का बन गया।