सगाई के 5 साल बाद हुई थी शाहजहां और मुमताज की शादी- इस शर्मनाक वजह से हुई देरी

कहानियों और उसकी निशानियों का जब भी प्रेम जिक्र होता है तो मुगल बादशाह शाहजहां और मुमताज महल का नाम जरूर आता है. पाकिस्तान के लाहौर में 5 जनवरी 1592 को जन्मे शाहजहां की 13 शादियां हुई थीं. सबसे ज्यादा प्रेम शाहजहां ने मुमताज से ही किया. इसके सुबूत इतिहास में भी दर्ज हैं. इतालवी इतिहासकार निकोलाओ मनूची लिखते हैं कि यूं तो कई औरतों से बादशाह शाहजहां का नाम जोड़ा गया, लेकिन उन्होंने बेनपाह प्यार सिर्फ अपनी मुमताज महल से किया. उनकी कई पत्नियां थीं, लेकिन वो सबसे ज्यादा समय मुमताज के साथ ही बिताते थे.

मीना बाजार में शाहजहां और मुमताज महल की मुलाकात हुई, हालांकि उन्हें उस वक्त बादशाह शाहजहां की पदवी नहीं मिली थी. इसलिए खुर्रम के नाम से शहजादे जाने जाते थे. मीना बाजार से खुर्रम गुजर रहे थे, तभी उनकी नजर एक लड़की पर पड़ी, जो कीमती पत्थर और रेशम के कपड़े बेच रही थी. कपड़ों को बेहद सलीके के साथ तहाते हुए एक से दूसरी तरफ रख रही थी. पहली बार उसे देखते ही दिल दे बैठे. उन्होंने लड़की की आवाज सुनने के लिए दुकान से एक कीमती पत्थर उठाया और कहा, यह कैसा है?

लड़की ने कहा कि ये पत्थर नहीं, कीमती हीरा है। आपको इसकी खूबसूरती और चमक से अंदाजा नहीं लगा क्या? इसकी कीमत 20 हजार रुपये है. उसकी बात सुनकर खुर्रम कीमत देने को तैयार हो गए तो वो हैरान हो गई. खुर्रम ने कहा कि अगली मुलाकात तक इस पत्थर को वो सीने से लगाकर रखेंगे. वो लड़की कुछ मिनट की बातचीत में यह समझ चुकी थी कि यह कोई आम बात नहीं. खुर्रम की बात सुनकर डरते हुए बोली कि पर अगली मुलाकात होगी कब? तब खुर्रम ने बहुत धीरे से बोला कि जब दिल मिलेंगे तब. इसके बाद उनके मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ.

‘ताजमहल’ में शाहजहां और मुमताज महल की प्रेम कहानी का जिक्र किया है. इसमें लिखा है कि अर्जुमंद बानो उस लड़की का नाम था. अर्जुमंद के दादा मिर्जा गयास बेग थे जो कि अकबर के शाही दरबार का हिस्सा थे. वहीं, फूफी मेहरुन्निसा की शादी बादशाह जहांगीर से हुई जो कि बाद में नूरजहां के नाम से चर्चित हुईं.

शहजादे शहाबुद्दीन मोहम्मद ख़ुर्रम ने एक दिन पिता जहांगीर से अर्जुमंद बानों का जिक्र किया और शादी कराने की बात कही. दोनों की मंगनी कराने के लिए बादशाह राजी हुए. दोनों की शाही रस्मो-रिवाज के साथ मंगनी हुई और अपनी उंगली से शहजादे ने अंगूठी निकालकर अर्जुमंद बानो को पहनाई. अपनी भतीजी की शादी शहजादे से कराने में नूरजहां ने भी खास दिलचस्पी ली.

दोनों को मंगनी के बाद 5 साल लंबा इंतजार करना पड़ा. इसकी वजह थी कि दोनों की शुभ शादी की दरबारी ज्योतिषियों ने जो तारीख तय की वो 5 साल बाद थी. यही वजह रही कि मंगनी दोनों की 1607 में हुई, लेकिन शादी 1612 में हुई. जहांगीर ने शादी के दिन खुद बेटे के सिर पर पगड़ी बांधी. मोतियों का हार बांधा और मेहर में भी 5 लाख रुपये दिए गए. शहजादे खुर्रम को सत्ता संभालने के बाद शाहजहां और अर्जुमंद बानों को मुमताज महल के नाम जाना गया.