हिन्दू शब्द और हिन्दुओं से इसलिए इतनी ज्यादा नफरत करते थे भिखारी – जानें किसके थे करीबी

कई बार भारत में हिंदू राष्ट्र को लेकर बहस होती रहती है। जब 1947 में देश का धर्म के नाम पर विभाजन किया गया तो उस दौरान भी भारत को एक हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की प्रबल मांग उठी थी। इसके बाद 30 सितम्बर 1947 को मिलों में काम करने वाले कर्मचारियों एवं मजदूरों के बीच प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एक भाषण देते हुए कहा कि जब तक भारत से जुड़े मामलें मेरे अधिकार में है तब तक भारत एक हिन्दू स्टेट नहीं बनेगा।

अगर इन्ही शब्दों का प्रयोग हिन्दू राष्ट्र की मांग को मूर्खतापूर्ण, मध्ययुगीन और फासीवादी बताने वाले जवाहरलाल नेहरू पाकिस्तान की मांग के विरोध में करते तो शायद स्थितियां इतनी जटिल न होती, जोकि विभाजन के दौरान देखने और सुनने को मिली। उस दौरान छपी कोई पुस्तक अथवा संस्मरण नहीं है जिसमें विभाजन के दुष्परिणामों का जिक्र न हो। पिछली सदी का वह सबसे बड़ा विस्थापन भारत का बंटवारा था, जिसमें नरसंहार और अमानवीय वेदनाओं के लाखों उदाहरण सामने है। इन सबके बावजूद कभी मुहम्मद अली जिन्ना को हिटलर और मुसोलिनी कहकर उन्होंने संबोधित नहीं किया।

दरअसल, हिन्दू राष्ट्र से नेहरू का विरोध उसमें हिन्दू शब्द समाहित होने के कारण था, क्योंकि इसे लेकर वे कई प्रकार के पूर्वाग्रहों से ग्रसित थे। वे न तो हिन्दू राष्ट्र की समावेशी परिभाषा को समझ सके और ना ही हिन्दुओं के सहिष्णु एवं धर्मनिरपेक्ष होने के इतिहास को।अपनी पुस्तक ‘द नेहरू एपोक’ में उनके साथ काम कर चुके और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे द्वारकाप्रसाद मिश्रा लिखते है कि ‘प्राचीन हिन्दू चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद नेहरू को अवैज्ञानिक नजर आती थी। इसलिए उनके बारे में हिन्दू महासभा के बीएस मुंजे ने कहा था कि ‘वे शिक्षा से अंग्रेज, संस्कृति से मुस्लिम और दुर्भाग्य से हिन्दू है।‘

सदैव प्रधानमंत्री नेहरू ने धर्मनिरपेक्ष शब्द का गलत इस्तेमाल किया। तर्कसंगत बातों की बजाय वे इच्छाओं और पूर्वाग्रहों को अधिक महत्व देते थे। इसीलिए कांग्रेस के भीतर से उठनेवाली हिन्दू राष्ट्र की मांग का उन्होंने सदैव विरोध किया।उनकी हिन्दू शब्द से चिढ कभी खत्म नहीं हुई और कालांतर में यही हिन्दू विरोधी सोच कांग्रेस की परिपाटी बन गयी।