बड़े काम का होता है कोहरा, सुखी जगह पर वरदान का काम करता है!

Desk : पूरा उत्तर भारत इस समय ठण्ड की चपेट में है। ठंड के साथ-साथ कोहरे ने भी इलाके में मुश्किल हालात पैदा कर दिए हैं। कोहरे की वजह से सड़कों पर चलने वाले वाहनों को खासी परेशानी हो रही है। लेकिन, यही कोहरा परेशानी के साथ कई देशों के लिए वरदान से कम नहीं। ये देश कोहरे का इस्तेमाल खेती के लिए कर रहे हैं, कोहरे से खेती वाली इस तकनीक को फॉग हार्वेस्टिंग कहा जाता है, जो रेन वाटर हार्वेस्टिंग की तरह काम करती है।


कैसे बनता है कोहरा? फॉग हार्वेस्टिंग तकनीक को जानने से पहले आपका समझना जरुरी है कि कोहरा कैसा बनता है? ठंड के मौसम में हवा में मौजूद नमी बूंद में बदल जाती है। जो हमें कोहरे के रूप में नजर आती हैं। (उदाहरण के तौर पर देखे तो “जब सर्दियों में हम घास पर हाथ फेरते है तो हाथ गीला हो जाता है, जो कोहरे की ही वजह से होता है।” ) नमी बूंद की इन बूंदों को फॉग हार्वेस्टिंग के जरिये पानी में बदला जा सकता है।
कैसे होती है फोग हार्वेस्टिंग?

हवा में मौजूद नमी को बूंदों में बदलने की प्रक्रिया को फोग हार्वेस्टिंग कहा जाता है। हवा में मौजूद इस नमी को इकठ्ठा करने लिए बड़े-बड़े जाल लगाए जाते हैं, इनसे टकराकर फॉग बूंदों में बदलता है और पाइप के सहारे इस पानी को टैंक में इकट्ठा कर लिया जाता है, जिसे समय आने पर प्रयोग किया जाता है। खासकर पहाड़ी और समुद्री इलाकों में यह तकनीक ज्यादा कारगर है, क्योंकि वहां कोहरा जयादा होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस तकनीक से एक दिन में किसी एक स्थान पर 1 हजार लीटर पानी इकट्ठा किया जा सकता है, हालांकि ये जाल के साइज, स्थान और कोहरे पर निर्भर करता है।


कब और कहां से शुरू हुआ फोग हार्वेस्टिंग? पानी की कमी के चलते दक्षिण अफ्रीका सूखे की मार झेल रहा है। लगभग 52 साल पहले यहीं से कोहरे को पानी में बदलने की प्रक्रिया की शुरुआत हुई। तब यहां सबसे पहले सौ वर्ग मीटर में दो डिवाइस लगाए गए थे जो कोहरे को कैच करके पाइप की मदद से एक कंटेनर में ले जाते थे। हालांकि उस समय सिर्फ 14 लीटर ही पानी जमा हो सकता था, लेकिन तकनीक सफल रही थी। तब से केपटाउन में इस तकनीक का प्रयोग करके पानी की कमी को पूरा किया जाता है।