आखिर संपति की सुरक्षा के लिए कितना जरूरी है वसीयत का होना? जानिए इससे जुड़ी सभी काम की बातें

डेस्क : वर्तमान के अनिश्चितता भरे दौर में हर किसी के लिए कानूनी तौर पर यह जरूरी होता है कि वह अपनी वसीयत को जरूर लिखवाए। खासतौर पर जिनके पास एक से ज्यादा कानूनी वारिस हो उन्हें संपत्ति के विवादों से बचने के लिए अपनी वसीयत जरूर लिखवा कर रखनी चाहिए।

वसीयत क्या है तथा कौन इसे लिखने का अधिकार रखते हैं : वसीयत एक तरह की कानूनी घोषणा होती है जो कि संपत्ति के मालिकाना हक को हस्तांतरित करती है। वसीयत कर्ता की मृत्यु के बाद से वसीयत मान्य होती है। लेकिन कई बार वसीयत कर्ता की जीवित रहते हुए भी उसकी स्वास्थ्य ,मानसिक स्थिति सही नहीं रह पाने की स्थिति में वसीयत को मान्यता मिल जाती है।

वसीयत एक ऐसा दस्तावेज होता है जो यह सुनिश्चित करता है कि संपत्ति मालिक संपत्ति के बारे में अर्थात वसीयत कर्ता की इच्छा या इरादे क्या है तथा किस तरीके से पूरी वह किए जाएंगे। यह चल और अचल संपत्ति दोनों के लिए किया जा सकता है।कोई भी बालिग व मानसिक रूप से सेहतमंद व्यक्ति अपनी चल अचल संपत्ति का वसीयतनामा भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के अंतर्गत कर सकता है। वसीयत हाथ से लिखा भी हो सकता है और टाइप भी करवाया जा सकता है।

किन बातों का ध्यान रखना है ज़रूरी वसीयत लिखने वक़्त : वसीयत लिखने का कोई टाइप किया हुआ फॉर्मेट नहीं होता है। लेकिन कुछ कानूनी टर्म्स ऐसे होते हैं जिनका इनमें शामिल किया जाना काफी जरूरी होता है ताकि बाद में किसी तरीके के कानूनी पचड़े में ना परना पड़े ।जैसे वसीयत कर्ता के लिए वसीयत को एग्जीक्यूट करवाने वक्त उसके ऊपर एग्जीक्यूटर का नाम सही और स्पष्ट तरीके से लिखा हुआ जरूर होना चाहिए तथा अगर पहले से कोई भी वसीयत लिखी गई है तो उस संपत्ति के संबंध में भी उसे निरस्त होने की बात स्पष्टता से लिखी होनी चाहिए।

वसीयत में सारी चल व अचल संपत्ति, म्युचुअल फंड्स, फिक्स डिपाजिट जैसी संपत्तियों की लिस्ट दी जानी चाहिए। एक से ज्यादा वारिस होने की स्थिति में स्पष्ट तरीके से संपत्ति का विभाजन किया जाना चाहिए। अगर किसी माइनर को वसीयत लिखी जा रही है तो उसके गार्जियन का उल्लेख किया जाना भी जरूरी होता है। वसीयत तैयार होने के बाद इसकी सभी प्रति के सारे पेपर पर गवाहों के हस्ताक्षर होनी चाहिए। वसीयत हमेशा ही लिखी जा सकती है और पहले की वापस भी ली जा सकती है। मान्यता हमेशा उस को मिलती है जो कि नई लिखी गई। उसमें ध्यान देना जरूरी रहता है कि पुरानी वसीयत को रद्द कर दिया जाए।