जब गहरे सदमे में थे रामविलास पासवान! फिर वह लड़े… और उठ खड़े हुए

डेस्क : दिवंगत केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान अब भले ही हमारे बीच में नहीं है परंतु उनके कार्यकाल और जज्बे को लेकर हमेशा आम जनमानस में प्रेरणा बनी रहेगी। रामविलास पासवान बिहार के खगड़िया डिस्ट्रिक्ट के शहरबन्नी गांव से थे। जहां पर उन्होंने एक समय पर देखा कि दलितों पर बहुत ज्यादा अत्याचार हो रहे हैं तो उनके लिए उन्होंने आवाज उठाने का प्रयास किया।

उन्होंने हमेशा दबे कुचले वर्गों एवं वंचित लोगों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ी वे जीवन भर असहायों की आवाज बनते रहे और उन्होंने कभी भी राजनीति में अपना नफा नुकसान नहीं देखा बल्कि दूसरों के लिए ही एकाग्र होकर काम करा। रामविलास पासवान ने अपनी धमक अंत तक बनाए रखी।रामविलास पासवान ने पिछड़े वर्ग की सिफारिश के लिए तकरीबन 15% आरक्षण देने की अकेले ही आवाज उठाई थी। वह कहते थे कि गरीब, जरूरतमंदों और वंचितों लोगों को सारी व्यवस्था का लाभ मिलना चाहिए जिससे वह समाज में कंधे से कंधा मिलाकर चल सके। केंद्र में बैठी मोदी सरकार ने जब वर्ष 2019 में सवर्णों को 10% आरक्षण देने का फैसला लिया था तो रामविलास पासवान ने खुलकर इसका समर्थन करा था, जिससे साफ तौर पर पता चलता है कि देश के सवर्णों में उनकी एक अलग पहचान है।

रामविलास पासवान 9 बार सांसद बन चुके थे और 1969 से लेकर 2020 तक काफी ज्यादा राजनीति में सक्रिय रहे। उन्होंने अपनी पहचान दलित नेता के रूप में करी और वह कई दलों में भी शामिल रहे। पहली बार वह 1969 में विधायक बने थे और बिहार की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े थे। वह सोशलिस्ट पार्टी से काफी लंबे समय तक जुड़े रहे साथ ही साथ कई दलित संगठनों को अपने साथ लिया और जिनके महासचिव भी रहे, 1977 में उन्हें पहली जीत हासिल हुई और पहली बार लोकसभा के चुनाव में उन्होंने सबसे ज्यादा वोटों के साथ विश्व रिकॉर्ड बनाया था।

इसके बाद जब फिर से चुनाव हुए लोकसभा के 1982 में तो उन्होंने दूसरी बार सबसे ज्यादा मतों के साथ जीत हासिल करी थी और अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ डाला था। अपने नाम को उन्होंने विश्वस्तरीय रिकॉर्ड में दर्ज करवाया था और अगर बात करें 2005 से 2009 की तो उसमें सियासी उतार चढ़ाव रहे। उस दौरान उनका कालखंड काफी मुश्किल में बीता था। राजनीति में उनका कद इतना बड़ा नहीं हो पाया और 2009 की हार ने उन्हें गहरा सदमा दिया था।

उनका यह संघर्ष जीवन भर चलता रहा और दलितों के नेता के तौर पर उन्होंने काफी मशक्कत करी कभी उत्तर प्रदेश के बिजनौर से खड़े हुए तो कभी बिहार चुनाव लड़ते रहे आपको बता दें कि उन्होंने वर्ष 2000 में अपनी अलग लोक जनशक्ति पार्टी बनाई थी और फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में राजद के खिलाफ कांग्रेस से गठबंधन किया था। इस दौरान उन्हें कामयाबी भी हासिल हुई और लोजपा को पहली बार 29 विधायक प्राप्त हुए हालांकि कुछ ही महीने के भीतर पार्टी फिर से खंडित हो गई पर वह दोबारा खड़े हुए और पिछले 2 सालो से राज्यसभा सांसद बने रहे। इस दौरान 2010 में बेटे चिराग को भी राजनीति में उतार दिया और अब उनकी आगे की विरासत वही संभालेंगे।