किसी जीवित व्यक्ति को कभी देखें है यह सावित करते हुए कि वह जिंदा हैं। ठीक उसी तहर जैसे ‘कागज’ फ़िल्म में पंकज त्रिपाठी को साबित करना पड़ता है। ऐसा ही एक घटना बिहार से सामने आई है। दरअसल 53 वर्षीय बुचुन देवी पिछले कई सलों से चिल्ला-चिल्ला कर सावित करने में लगी हुई है कि वे जिंदा हैं। लेकिन सरकार मानने को तैयार नहीं है, क्योंकि कागजात में उसकी मृतु हो चुकी है। इस वजह से महिला को सरकारी लाभ कुछ नहीं मिल पाता है यहां तक कि वे अपनी जमीन तक के हकदार नहीं हैं। हैरानी की बात तो यह है कि महिला को किसी अन्य ने नहीं ने बल्कि उसके संतानों ने ही कागजों में जीवित में ही अंतिम संस्कार कर दिया है।
पश्चिम चंपारण के चनपटिया के गिद्धा गांव निवासी बुचुन देवी पिछले कई वर्षो से दर- दर की ठोकर खाकर खुद के जिंदा होने का सबूत जमा कर रही है। मालूम हो कि बुचुनी देवी की शादी गिद्धा गांव के शिवपूजन महतो संग हुई थी। मसला यह है कि शिवपूजन ने अपने बेटे की व्यवहार से तंग आकर 18 कट्ठा 19 धुर जमीन बुचुन देवी यानी अपनी पत्नी के नाम कर दी। इसी जमीन के लोभ में बेटे सुखदेव प्रसाद ने फर्जीवार ढंग से 1987 में अपनी मां का मृत्यु प्रमाण पत्र चनपटिया प्रखंड से बना लिया। अब चार साल पहले अपनी मां बुचुन देवी को घर से बाहर कर दिया। उस समय से अभी तक असहाय महिला घोघा गांव स्थित अपने मायके में ही रहने लगी।
बुचुन देवी ने आरोप लगते हुए कहा है कि उसके बच्चे और पति अक्सर मारपीट कर घर से निकाल देते हैं। इस संबंध में महिला ने कई बार बीडीओ से लेकर सीओ तक को खुद को जीवित सावित करने का कोशिश किया परन्तु उन्हें यह कहकर खदेड़ दिया जाता है कि तुम मर गई हो।
हालांकि गिद्धा पंचायत की पूर्व मुखिया कौशल्या देवी ने बुचुन देवी को जीवित मानते हुए एक प्रमाण पत्र 9 मार्च 2019 को जारी किया था। जारी किए गए प्रमाण पत्र में यह लिखा था कि वह जिंदा हैं। परंतु इस संबंध में चनपटिया प्रखंड के तत्कालीन बीडीओ, पंचायत सचिव की भूमिका संदिग्ध है। क्योंकि कानून कहता है कि यदि किसी की मृतु हो जाती है तो प्रमाण पत्र जारी करने से पूर्व पंचायत सचिव को घटना स्थल पर जाकर मामले की जांच करनी होती है। यहां बगैर सत्यापन के ही 1987 का तारीख देकर मृत्युप्रमाण पत्र जारी कर दिया गया है।