बिहार केशरी की स्मृति बखरी डाकबंगला दिलाती है भारतीय सभ्यता और संस्कृति की याद

भारत अपनी सभ्यता और संस्कृति को अक्षुण्य बनाए रखने के लिए विश्व में प्रसंसा का पात्र है। वहीं जब इसकी महत्वपूर्ण स्मृतियों से सजी धरोहरों को जब नष्ट किया जा रहा हो तो लोगों में आक्रोश का होना लाजिमी है।

जी हाँ हम बात कर रहे बेगूसराय जिले के बखरी में अवस्थित उस डाकबंगला का जिसे अंग्रेजों ने लगभग सौ वर्ष पूर्व सुर्खी चूना, कत्था, कंक्रीट आदि से निर्माण किया था। जिसमें बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री व बिहार केशरी श्रीकृष्ण सिंह के आजादी के समय किये गये संघर्ष, आन्दोलन का याद कैद है, जिसे ध्वस्त होते ही उनकी यादों की निशानी विलीन हो जायेगा। जिससे भारत का यह अविस्मरणीय धरोहर सदा के समाप्त हो जायेगा, जो भारतीय संस्कृति के धरोहर को अक्षुण्य रखने की परंपरा पर करारा आघात है।

विदित हो कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी के द्वारा सविज्ञा आन्दोलन चलाया गया, जिसके तहत नमक बनाने के लिए नमक सत्याग्रह का ऐलान किया गया। जिस कड़ी में श्रीबाबू ने मुंगेर के कस्टडी घाट से गढ़पुरा तक की पैदल यात्रा करके अंग्रेजों के दमनकारी नमक कानून का विरोध किया तथा गढ़पुरा में नमक का निर्माण कर अंग्रेजों को खुली चुनौती देने का काम किया।

जिसके उपरांत अंग्रेजों ने उन्हें बेगूसराय के तत्कालीन जिला मुंगेर के डीएम एसपी के माध्यम से 23 अप्रैल 1930 को बेगूसराय में गिरफ्तार कर बखरी के इसी डाक बंगला में एक अदालत लगाई और बिहार केसरी को 6 महीने कैद की सजा सुनाई थी। उसके कुछ दिन बाद उन्हें हजारीबाग जेल भेज दिया गया था। इसी दिलेरी के कारण महात्मा गांधी ने श्रीबाबू को बिहार का कर्मयोगी कहा था। और जब यहीं कर्मयोगी आगे चलकर बिहार का प्रथम मुख्यमंत्री बने।

उसके बाद जब भी इन्हें बखरी आने का मौका मिला तो अपने कर्मस्थली इस डाकबंगला में ठहरने का काम किया है। जो उनकी स्मृति व स्वाधीनता आन्दोलन का धरोहर है, जिसका नष्ट होना भारतीय संस्कृति का नाश होना है।

इस संदर्भ में बखरी के सामाजिक कार्यकर्ता व वरिष्ठ कांग्रेस नेता तथा कलाकार कमलेश कुमार कंचन का कहना है कि श्रीबाबू का बखरी आने जाने का सिलसिला आजादी के पहले से ही था, जब भी वे बखरी आते-जाते तो बखरी के प्रथमं विधायक व बिहार विधानसभा के डिक्टेटर के नाम से चर्चित शिवव्रत नारायण सिंह तथा शकरपूरा के मित्रों से जरूर मिला करते थे। जो उनका बखरी से अपार लगाव का द्योतक है। श्री कंचन ने बताया कि मुख्यमंत्री बनने के बाद श्रीबाबू जब पहली बार बखरी आए तो उनकी गिरफ्तारी में भूमिका निभाने वाले शकरपुरा के कारी पासवान से मिलें। जो बखरी के डाक बंगला में काम करते थे। उन्होंने उन्हें बुलावा भेजा तो पहले वे आने से बहुत डर रहे थे। श्रीबाबू ने उन्हें प्रेमपुरा बुलाकर, उन्हें सम्मानित किया तथा कहा उस समय यह आप की ड्यूटी थी। जो उनके मृदुरभाव परिचायक है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो बिहार की सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन में श्रीबाबू का महत्वपूर्ण योगदान है, जिसमें बखरी की कर्मयात्रा का प्रेरक भूमिका है। विदित हो कि उक्त डाक बंगला जिला परिषद के जमीन पर निर्मित है। जिस पर जिला परिषद के द्वारा मार्केट बनाने का काम जारी है। डाक बंगला के चारों तरफ से करीब-करीब मार्केट के लिए मकान बन के तैयार हैं। जबकि डाक बंगला अभी भी वर्तमान में खड़ी है। समझा जाता है की डाकबंगला को ध्वस्त कर वहां पर फील्ड बनाया जाएगा। जहां मार्केट में आने वाले लोगों का वाहन पार्किंग या अन्य कार्यों के लिए उपयोग होगा।

उक्त डाकबंगला में बर्षों तक बखरी थाना चला है, जो करीब दो साल पहले रामपुर में नया थाना बनने पर सिफ्ट हुआ है। जिसके यह डाकबंगला खाली हो गया और इसमें जिला परिषद द्वारा मार्केट बनाने का काम शुरू हुआ।जबकि यह डाकबंगला अतिथियो के ठहरने के लिए है, अंग्रेज भी यहाँ ठहरते थे, प्रशासन के अधिकारी भी ठहरते थे।इसके टूट जाने से प्रशासनिक अधिकारी तथा अतिथियों के ठहरने का जगह समाप्त हो जायेगा।

इस संदर्भ में जिला परिषद के अध्यक्ष रविंद्र प्रसाद से संपर्क साधने पर उनका कहना है कि श्री बाबू के स्मृति से भरा उक्त डाक बंगला के संरक्षण के लिए पहले हम विभागीय स्तर से बात करेंगे और पूरी जानकारी लेने के बाद इस संदर्भ में कोई कदम उठा पाएंगे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा इसके लिए वहां के ग्रामीणों तथा नागरिकों को बैठकर इसके संरक्षण के लिए विचार करना चाहिए।

कौशल किशोर क्रांति
बखरी बेगूसराय बिहार