पटना : इसमें कोई शक नहीं है कि भारतीय युवा पूरे विश्व में अपनी काबिलियत का लोहा मनवा चुके हैं और जिस तेजी से हम अपने देश की तरक्की का सपना देख रहे हैं, उसमे हमारी युवा पीढ़ी हर क्षेत्र में सफलता के नए आयामों को छू रही है। इन सबके बीच एक सवाल यह है कि क्या व्यक्तिगत विकास और खुद को सेपरेट रखने की सोच एक स्वस्थ्य समाज का निर्माण कर सकेंगी?
समाज की ज़रूरतों और मुसीबतों को जनता की आवाज़ बनकर सत्तानशी तक पहुंचने की ज़िम्मेदारी भी अब युवाओं को अपने जवान कंधे पर रखनी होगी। विश्व की सबसे विशाल लोकतंत्र की आधी से अधिक आबादी के रगों में जब जवान लहू की वेग दौड़ती हो, तब यह लाज़मी है कि उनका प्रतिनिधित्व भी उनमें से ही कोई करे। राजनीति की परिभाषा लोग अपनी समझ के अनुसार गढ़ते हैं मगर वास्तविकता कुछ और कहती है।राजनीति राष्ट्रीय व्यवस्था एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को सुचारू व सुगम बनाने की प्रणाली है। इसके अपने मूल्य एवं नीतियां हैं, जो सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय के उच्च आदर्शों से ओत-प्रोत है।
इसे विडंबना ही कह सकते हैं कि आज़ाद भारत में जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन के बाद से राजनीति में युवाओं की भागीदारी अस्त की ओर मुखर होती गई। वजह अनेक हैं मगर अहम यह है कि समय के साथ बदलते सामाजिक ढ़ाचे मे राजनीति ने अपनी ऐसी छवि बनाई जिससे आधुनिक युवाओं ने दूरी बनाना ही बेहतर समझा।
हाशिये पर जा चुकी छात्र राजनीति आज राजनैतिक पार्टियों के लिए महज़ चुनावी हथकंडे बनकर रह गए हैं। वंशवाद और परिवारवाद की फैल रही जड़ों ने युवाओं और देश की सक्रिय राजनीति मे उनकी भागीदारी के बीच एक खाई बनाने का काम किया है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि नवीनतम राजनीति को स्वागत करने की बजाय कमोबेश सारे दलों ने वंशवाद और परिवारवाद के पैरों तले कुचलने की कोशिश की है। नतीजतन, युवाओं ने राजनीति में विलुप्त होते दिख रहे अपने भविष्य की बजाय इससे अपना पल्ला झाड़ लेना ही बेहतर माना।
इन सबके बावजूद यह कहना गलत नहीं होगा कि युवाओं की राजनीति में गहराती दिलचस्पी ने लोकतंत्र का चेहरा अधिक उजला किया है और राजनीति में जिस ईमानदारी की मांग लंबे समय से की जा रही थी, उसके लिए जगह बनाने का काम भी किया है। सबसे अच्छी बात यह है कि भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले युवाओं की संख्या कुछ मुट्ठी भर युवाओं तक ही सिमटी नहीं है, बल्कि उसका विस्तार तेजी से हो रहा है। आईआईटी, आईआईएम और देश के विभिन्न हिस्सों में अच्छे संस्थानों से शिक्षा प्राप्त रहे ऐसे कई युवा हैं, जो राजनीति में प्रवेश के लिए इच्छुक दिखाई दे रहे हैं। भारत युवाओं की राजनीति में दिलचस्पी अध्याय पर खड़ा है
मौजूदा दौर में धीरे-धीरे ही सही मगर युवाओं की राजनीति में बढ़ती दिलचस्पी एक सुखद संदेश है। यह सिलसिला अगर यूं ही कायम रहा तब वो दिन दूर नहीं जब भारत में बड़े पैमाने पर परिवर्तन देखी जा सकती है।
लेखक शशि कुमार सिंह पटना के सामाजिक कार्यकर्ता हैं ।