पढ़िए एक बिहारी की दिलचस्प कहानी, iPhone Mobile को नहीं पहचाना तो निकाल दी नौकरी से..

किसी किसी ने सच ही कहा है अगर आप में कुछ करने का हौसला हो तो नामुमकिन काम भी मुमकिन हो सकता है। ऐसे ही जबरदस्त कहानी बिहार के मधेपुरा के रहने वाले दिलखुश कुमार की है। दिलखुश ऑनलाइन टैक्सी उपलब्ध कराने कंपनी के Aryago के फाउंडर और सीईओ हैं। दिलखुश बिहार के छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में वैसी ही सेवा दे रहे हैं। जैसी दिल्ली-मुंबई में ओला-ऊबर दे रहे हैं। उन्होंने अपनी आर्यागो सर्विस की शुरुआत गांव से करने की ठानी। इसकी शुरुआत उन्होंने 2016 में की थी।

हमेशा से मन में यही था ड्राइवरों के लिए कुछ करना है : दिलखुश ने बताया पिता जी ड्राइवर हैं। इसलिए ड्राइवरों की जिंदगी को बहुत करीब से देखा है। हमेशा ही मन में था कि ड्राइवरों के लिए कुछ करना है। मैंने पढ़ाई सिर्फ मैट्रिक तक ही की है, ऐसे में ठेकेदारी करने लगा। कुछ पैसा जमा हुआ तो यह बिजनेस खोलने की बात मन में आई। जैसे हर छोटो गांव-शहर में होता है। सबने बहुत टांग खींची, हितोत्साहित भी किया, लेकिन मैं अड़ा रहा। अपना प्लान लेकर गाड़ी के ऑनर्स के पास गया तो सभी कहते कि 100-200 रुपए के लिए अपनी लाखों की गाड़ी नहीं देंगे। ऐसे में मैंने अपने पैसे से 2 पुरानी गाड़ियां खरीदकर बिजनेस शुरू किया। लोगों ने जब देखा कि इसमें तो दिन के 1000-1500 रुपए मिल जाते हैं, तो उन्होंने अपनी गाड़ियां भी जोड़ीं। अभी कंपनी से 200 से ज्यादा गाड़ियां जुड़ी हैं।

दिलखुश अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है…. आज मैं अपने ड्रीम फ़ोन iPhone 11 (256 GB) का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। अमेज़न वाले को इसे आज डिलीवर करना देना था। जैसे जैसे समय बीत रहा था। मिलने की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, अंततः आज 4 बजे मिलन हो ही गया। आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व सहरसा में जॉब मेला लगा था।

मैं भी बेरोजगार की श्रेणी में खरा था। पापा मिनी बस चलाते थे, तनख्वाह लगभग 4500 थी। जिसमें घर चलाना कठिन हो रहा था। ऐसे में मुझे नौकरी की जरूरत महसूस होने लगी, मैंने भी उस मेले में भाग लिया जहां पटना की एक कंपनी ने अपने सारे दस्तावेज जमा किए थे। उसी कंपनी के एक साहब थे। उन्होंने कहा, आपका आवेदन पटना भेज रहे हैं। 5 अगस्त को पटना के SP वर्मा रोड़ में आ जाइएगा, वहां इंटरव्यू होगा। वहां सफ़ल हो गए तो 2400 रुपए महीने की सैलरी मिलेगी। मैं उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। कई रात ठीक से सो नहीं पाया था। बस उसी नौकरी के बारे में सोचता रहता था। लगभग 1 हफ्ता इंतजार के बाद 5 तारीख़ आ ही गई। सुबह 5 बजे सहरसा से पटना की ट्रेन थी।

जो 11 बजे तक पटना पहुंचा देती थी। इंटरव्यू का वक्त 3 बजे का था। सुबह जैसे ही उठे मूसलाधार बारिश की आवाज़ सुनाई दी। बाहर निकला तो देखा बहुत तेज बारिश हो रही थी। समझ मे नहीं आ रहा था स्टेशन कैसे पहुंचूंगा। हमारे गांव से स्टेशन की दूरी 10 किलोमीटर है। अंत में अपने एक परिचित के सहयोग से प्लस्टिक से पूरे शरीर को ढक कर स्टेशन पहुंचा और ट्रेन पकड़कर पटना के लिए चल पड़ा। मन से ईश्वर को याद करते-करते पटना पहुंचा। लेकिन बारिश ने पटना में भी पीछा नहीं छोड़ा. मैं अपने जीवन में पहली बार पटना आया था। जगह का कोई ज्ञान नहीं था। रेलवे प्लेटफॉर्म पर ही एक महानुभाव से जब एसपी वर्मा रोड का पता पूछा तो वह बोले, बस है 5 मिनट का रास्ता है।

मैंनें कुछ देर बारिश बंद होने का इंतजार किया। जब बारिश नहीं रुकी तो भींगते ही एसपी वर्मा रोड निकल गया। जिस बिल्डिंग में घुसा, उसमे मेरे जैसे 10 से 15 लोग पहले से मौजूद थे। सब बारी-बारी से अपना इंटरव्यू देकर निकल रहे थे। जब मेरी बारी आई तो मैं भी अंदर गया। सामने 3 पुरुष और 2 महिलाएं बैठी हुई थी। प्रणाम पाती किए तो साहब लोगों को बुझा गया कि लड़का पियोर देहाती है। नाम पता परिचय संपन्न होने के बाद एक साहब अपना फोन उठाए। फोन का लोगो मुझे दिखाते हुए बोले, इस कंपनी का नाम बताओ? मैंने वो लोगो उस दिन पहली बार देखा था।

मुझे नहीं पता था इसलिए मैंने कह दिया सर मैं नहीं जानता हूं। तब साहब का जवाब आया ये iphone है और ये Apple कंपनी का है। मेरी नौकरी तो नहीं लगी, वापस गांव आया और विरासत में मिली ड्राइवरी के गुण को पेशा बनाकर पिताजी के रास्ते पर ही निकल पड़ा और आज साहब का iphone दिखाने का स्टाइल कल तक मेरीआंखों में घूम रहा था। आज iphone आ गया अब शायद आज से साहब याद नहीं आएंगे।