काबर के बीच में होती है सिद्धिदात्री के मंगला स्वरूप की पूजा

बेगूसराय, मां भगवती दुर्गा की भक्ति कर शक्ति पाने का पर्व शारदीय नवरात्र शुरू होने में अब बस तीन दिन शेष रह गए हैं। हर ओर दुर्गा पूजा की धूम मचने लगी है। मूर्तिकार प्रतिमा को अंतिम रूप दे रहे तो डेकोरेशन वाले पंडाल को सजाने में जी जान से लगे हैं। बाजारों में भी चहल-पहल तेज हो गई है। 29 सितंबर से हर ओर ‘या देवी सर्वभूतेषु…’ गुंजायमान होने लगेगा। इसके साथ ही एशिया प्रसिद्ध काबर झील के बीच में स्थित देश के 52 शक्तिपीठों में चर्चित जयमंगला गढ़ में भी श्रद्धालुओं के लिए विशेष तैयारी की गई है।

बेगूसराय में काबर के मध्य में अवस्थित जयमंगला माता के दरबार में सभी नवरात्र के मौके पर मां की भक्ति कर शक्ति पाने वालों की बड़ी भीड़ जुटती है।

बेगूसराय में काबर के मध्य में अवस्थित जयमंगला माता के दरबार में सभी नवरात्र के मौके पर मां की भक्ति कर शक्ति पाने वालों की बड़ी भीड़ जुटती है।

सुनसान जगह पर मंदिर रहने के कारण बड़े पैमाने पर दूर- दूर से तंत्र-मंत्र के साधक यहां जुटते हैं और नौ दिनों तक साधना कर सिद्धि पाते हैं। यहां माता के मंगला एवं सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा होती है। कहा जाता है कि भगवती सती के वाम स्कंध का पात यहां हुआ था, जिससे यह सिद्ध शक्तिपीठ है। माता का यह सिद्ध स्थल दुर्गा के नवम स्वरूप में विद्यमान है तथा सिद्धिकामियों को सिद्धि प्रदान करती है। मंदिर के निर्माण समय का कोई ठोस साक्ष्य नहीं है लेकिन जयमंगलागढ़ में मिले भग्नावशेषों और शिलालेखों से अनुमान लगाया जाता है कि यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है। इस मंदिर के गर्भगृह में माता की मूर्ति है।

कहा जाता है कि मंगलारूपा माता जयमंगला किसी के द्वारा स्थापित नहीं, अपितु स्वतः प्रकट हैं । यहां जयमंगला देवी, दानवों के संहार एवं भक्तजनों के कल्याण के लिए स्वत: निर्जन वन में प्रकट हुई थी। देवी के प्रकट होने के साथ ही यहां काबर में अचानक बड़ी संख्या में रक्त कमल भी खिलने लगे थे । बाद में यहां रहने वाले दानवों ने देवी जयमंगला को वश में करने की बहुत कोशिश की और अंत में दैवीय शक्ति से शर्त हारकर भाग गए। आज भी सैकड़ों की संख्या में हनुमान माता के सबसे बड़े साथी हैं तथा यह चौबीसों घंटे मंदिर में विचरण करते रहते हैं। वैसे तो यहां सालों भर मंगलवार तथा शनिवार को माता की पूजा भक्तजन करते हैं लेकिन सभी नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। प्रत्येक साल एक जनवरी को नववर्ष का उत्सव मनाने के लिए भी यहां बिहार के विभिन्न क्षेत्र से एक लाख से अधिक लोगों की भीड़ उमड़ती है।

पुजारी शशिकांत झा एवं आने वाले भक्तों का कहना है कि मां की पूजा और दर्शन का विशेष महत्व है, यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। तभी तो अन्य जिलों और राज्य के श्रद्धालु भी मां के दर्शन -पूजन के लिए यहं आते हैं तथा मन्नतें मांगते हैं। सच्चे मन से मांगी गई मुरादें पूरी भी अवश्य होती हैं। सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां रक्तविहीन पूजा होती है। माता पुष्प, जल, अक्षत तथा दर्शन पूजन से ही प्रसन्न होती है। बलि की प्रथा नहीं है। नवरात्र में मंदिर परिसर में जप, पाठ -पूजन से मनोवांछित फल मिलता है। पुष्प, अक्षत, जल से माता की पूजा करने से ही माता कृपा बरसाती रहती हैं।