जानिए कौन हैं आरसीपी सिंह जिनके लिए नीतीश कुमार ने छोड़ी अपनी कुर्सी और खुद बताई इसकी वजह…

डेस्क : राजनीति पार्टी में एक ऐसा समय आता है जब उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष को उसका उत्तराधिकारी चुनना होता है। ऐसे में बिहार की राजनीति पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने अपना उत्तराधिकारी या यूं कहें तो वारिस चुन लिया है। नीतीश कुमार ने दो टूक में यह बात साफ की है कि आने वाले समय में उनकी जगह पूर्व आईएएस अधिकारी और राज्यसभा के सदस्य आरसीपी सिंह रहेंगे।

किसी भी पार्टी के लिए उसका उत्तराधिकारी एक महत्वपूर्ण अंश होता है क्योंकि आपातकालीन स्थितियों में जब अध्यक्ष मौजूद नहीं होता तो यही उत्तराधिकारी कमान संभालता है और ऐसे में उत्तराधिकारी कुछ इस तरह का होना चाहिए जिसमें एक तरह की ठसक नजर आए और इस तरह की ठसक आरसीपी सिंह के अंदर कूट-कूट कर भरी हुई है। हाल ही में हुई वर्चुअल कॉन्फ्रेंस में भी यही देखा गया है कि नीतीश के बाद भाषण देने के क्रम में आरसीपी सिंह का नंबर जरूर रहता है।

जब नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह का प्रस्ताव सबके सामने रखा तो किसी ने भी उनका विरोध प्रकट नहीं किया और अब यह साफ हो चुका है कि नीतीश कुमार के बाद जेडीयू की कमान आरसीपी सिंह ही संभालते नजर आएंगे। जब जनता दल यूनाइटेड में सीटों का बंटवारा हो रहा था या जब प्रत्याशियों का चुनाव करना होता था तो उसमें आरसीपी सिंह का नाम हमेशा मौजूद रहता था, जो कि नीतीश कुमार का सबसे ज्यादा भरोसा इस वक्त आरसीपी सिंह पर ही है।

आपको बता दें कि आरसीपी सिंह 2010 में राज्यसभा जा चुके हैं और 2016 में वह नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्यसभा तक पहुंचे थे। सब ने यहां आस लगा रखी है कि जल्द ही आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्री बनाए जा सकते हैं। उनकी जान पहचान काफी पुरानी है। नीतीश कुमार के साथ उनके अच्छे सम्बन्ध हैं और वह उनके परिवार के हितैषी भी रह चुके हैं। मिडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सन 1996 में जब आरसीपी सिंह तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद के निजी सचिव थे तो उनकी मुलाकात नितीश कुमार से हुई और यह मुलाकात काफी जल्दी गहरी दोस्ती में तब्दील हो गई। आरसीपी सिंह और नितीश कुमार एक ही जाति से सम्बन्ध रखते है और हाल ही में हुई बैठक में नितीश कुमार ने साफ़ कर दिया की एक ही आदमी किसी राज्य के दो पद नहीं संभाल सकता। जिस कारण किसी और को यह पद संभालना ही है। मैं तो मुख्यमंत्री भी नहीं बनना चाहता था लेकिन लोगो की जिद्द पर बनना ही पड़ा।