कोरोना संकट के बीच आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बिहार में सियासत तेज, जाने क्या था फैसला

डेस्क : इस कोरोना काल में भी नेता अपनी राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं। इस लॉकडाउन के बीच बिहार में एससी-एसटी आरक्षण का मुद्दा फिर से गरमा गया है। बता दें कि आगामी 4 महीने में बिहार में विधानसभा चुनाव होनो वाला है। जिसको देखते हुए प्रवासी मजदूर, राशन कार्ड, कोटा के छात्र जैसे कई मुद्दों ने काफी तूल पकड़ा। सियासत के इसी खेल में अब आरक्षण का मुद्दा तूल पकड़ता दिख रहा है। शुक्रवार को विधानसभा में आरक्षण के मुद्दे पर पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और उद्दोग मंत्री श्याम रज़क समेत विभिन्न दलों के 22 दलित विधायकों ने बैठक की है। इस सर्वदलीय बैठक में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर सवाल उठाए गए और तुरंत केंद्र सरकार से दखल देने की मांग की गई है।

क्या था फैसलाः हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण और परिणामी वरिष्ठता पर अहम फैसला सुनाते हुए कहा था कि राज्य सरकार पर्याप्त प्रतिनिधित्व जांचे बगैर प्रोन्नति में आरक्षण के साथ परिणामी वरिष्ठता नहीं दे सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने एम नागराज और जनरैल सिंह के मामले में संविधान पीठ के पूर्व फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि प्रोन्नति में आरक्षण के साथ परिणामी वरिष्ठता देने से पहले पर्याप्त प्रतिनिधित्वि जांचना होगा। इस फैसले के बाद से ही बिहार की सियासत में भूचाल आ गया है।

जदयू, राजद, कांग्रेस, हम पार्टी समेत सभी दलों के दलित विधायकों ने एक स्वर में आरक्षण की व्यवस्था को हमेशा जारी रखने के लिए इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने की मांग की है। बाद में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन भेजा गया जिस पर बैठक में शामिल सभी विधायकों के हस्ताक्षर हैं।