न्यूज डेस्क : नीरज चोपड़ा ने ओलिंपिक गेम्स में मातृभूमि भारत के लिए इतिहास रच दिया । वह व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा में भारत के लिए गोल्ड जीतने वाले दूसरे भारतीय बन गए हैं। नीरज ने शानदार तरीके से भाला फेंककर भारत को गोल्ड मेडल दिलवाया है। नीरज चोपड़ा को सोने का तमगा यूं ही नहीं मिला है। इसके लिए उन्होंने काफी त्याग भी किए हैं। कभी शाकाहारी रहे नीरज चोपड़ा अपने खेल की वजह से नॉनवेज भी खाने लगे थे। कड़ी मेहनत करने वाले खिलाड़ी को डायट के हिसाब से चलना ही पड़ता है, पर नीरज गोलगप्पे को पसंदीदा जंक फूड मानते हैं। उनके लंबे बालों की वजह से उन्हें सोशल मीडिया पर लोग मोगली के नाम से भी पुकारते हैं।
बचपन में कभी उन्हें सरपंच का कहकर चिढ़ाते थे: बताते चलें कि जब नीरज 13 साल की उम्र में अपने खंडरा गांव में 83 किलोग्राम वजन वाला कुर्ता पहनकर निकलते थे। तो बाकी बच्चे उसे सरपंच कहकर चिढ़ाते थे। 10 साल की कड़ी लगन और मेहनत के बाद वह नीरज चोपड़ा अब भारतीय एथलेटिक्स का सरपंच हो गया है। दूध-घी के शौकीन नीरज को फिट करने के लिए जब उनके चाचा सुरेंद्र पानीपत के शिवाजी स्टेडियम में लेकर गए थे तब उन्हें भी नहीं पता था कि उनका भतीजा टोक्यों के नेशनल स्टेडियम में कुछ ऐसा काम करेगा कि बल्ले का दीवाना देश भाले की दूरी नापने लगेगा 13 साल पहले बीजिंग ओलिंपिक में जब अभिनव बिंद्रा ने स्वर्ण पदक जीता था तब वहाँ पर राष्ट्रगान बजा था। इसके बाद टोक्यों में नीरज ने हमें उस गौरवपूर्ण क्षण का दोबारा अहसास कराया।
पिता ने जैसे तैसे पैसा जोड़कर 1.5 लाख का भाला दिलवाया था: बता दें कि नीरज बेहद ही निम्न मध्यवर्गीय परिवार से आता है। उन्हें इस खेल में अगले स्तर पर पहुंचने के लिए वित्तीय मदद की जरूरत थी, जिसमें बेहतर उपकरण और बेहतर खाना पीना की आवश्यकता थी। ऐसे में उनके छोटा किसान परिवार जिसमें उनके माता-पिता के अलावा तीन चाचा शामिल हैं। एक ही छत के नीचे रहने वाले 19 सदस्यीय परिवार में चचेरे 10 भाई बहनों में नीरज सबसे बड़े हैं। ऐसे में वह परिवार के लाड़ले भी हैं। परिवार की हालत ठीक नहीं थी और उसे 1.5 लाख रुपये का जेवलिन नहीं दिला सकते थे। फिर, पिता सतीश चोपड़ा और चाचा भीम ने जैसे-तैसे सात हजार रुपये जोड़े और उन्हें अभ्यास के लिए एक जेवलिन लाकर दिया।