बिहार का ऐसा मंदिर जो है विश्व का पहला राम जानकी मंदिर साथ ही साथ जो शाप मुक्ति स्थल के नाम से भी प्रसिद्ध है

बिहार अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक समृद्धि के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्धि प्राप्त करता रहा है। लेकिन यहां की खासियत के ऊपर खुश हुआ जाए या दुर्दशा पर रोया जाया। बहुत बड़ा प्रश्न है। विहार सनातन धर्म के प्रति आस्था रखने वाले लोगों के लिए एक से पूजनीय स्थलों की कृतियों को संजोए हुए है। लेकिन इनके जीर्णोद्धार का वादा प्रतिवर्ष किया जाता है। बिल्कुल चुनावी वादों की तरह लेकिन काम के नाम पर कुछ भी नहीं होता। ऐसा ही एक धार्मिक स्थल है जिसे की शाप मुक्ति स्थल साथ ही साथ भारत के पहले राम जानकी मंदिर के नाम से जाना जाता है।

कमतौल की अहिल्या नगरी में है पहला राम जानकी मंदिर अवस्थित यह मंदिर दरभंगा जिले के कमतौल की अहिल्या नगरी क्षेत्र में है जो अब जर्जर स्थिति में पहुंच जाने की वजह से किसी खंडहर जैसा आभास देता है। यहां एक देवी दरबार सजा रहता है जहां हमेशा ही कुछ लोग पूजा पाठ करते हैं ।यह मंदिर करीब 400 वर्ष पुराना है जो अपने अंदर हजारों किस्से कहानियों को समेटे हुए हैं। लेकिन रखरखाव के अभाव में चार सादिया देखने के बाद अब यह खंडहर में तब्दील होने जा रहा है। यहां की पौराणिक वस्तुएं भी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है।

दरभंगा के राजा छत्र सिंह ने करवाया था मंदिर निर्माण इस मंदिर के निर्माण के बारे में कहा जाता है कि तत्कालीन दरभंगा महाराज छत्र सिंह को जब पता चला कि अहिल्या माता का उद्धार स्थान दरभंगा में है तो इन्होंने वहां जाकर दर्शन करने की इच्छा जताई। मंदिर के स्थान पर उस वक्त घना जंगल था।

राजा रात्रि में विश्राम के लिए वहीं पर रुके और उन्होंने स्वप्न में देखा की माता अहिल्या और गौतम ऋषि जे स्वप्न में आकर उन्हें आदेश दिया कि उस स्थान पर तारणहार राम का मंदिर बनवा कर उसमें प्रभु श्री राम सीता माता लक्ष्मण जी हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की जाए । राजा ने तब मंदिर का निर्माण करवाया और यहां पर सभी प्रतिमाओं के साथ-साथ संरक्षण में अहिल्या माता और गौतम ऋषि की प्रतिमाएं भी स्थापित करवाई।

वक़्त की मार से अब मंदिर खंडहर में तब्दील होता जा रहा ह वर्तमान में जो संरचना मंदिर की है वह महाराजा छत्र सिंह और महाराज रूद्र सिंह के शासनकाल 1662 और 1682 के बीच बनवाई गई थी। इसी को भारत का पहला राम जानकी मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर की वास्तुकला और खूबसूरती सहेजने योग्य है, परंतु उसे ना तो सहेजा जा रहा है और ना ही इसके जीर्णोद्धार के लिए कोई कदम उठाया जा रहा है। वक़्त की मार को झेलते झेलते यह मंदिर जर्जर होते हुए अब खंडहर में तब्दील होने की स्थिति में आ गया है।