इनसाइड स्टोरी: आखिर क्या है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ने के पीछे की रणनीति

डेस्क: जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार का दूसरे कार्यकाल के लिए अभी सवा साल बाकी है। मालूम हो कि वह दूसरी बार अप्रैल 2019 में राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। लेकिन दूसरे कार्यकाल के पूरा होने से पहले ही उन्होंने अपने हनुमान रामचन्द्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) को यह जिम्मेदारी सौंप दी है। आखिर क्यों? दरअसल, जदयू संगठन को दूसरे राज्यों में विस्तार और बिहार में मजबूती देने की यह दूरगामी रणनीति है।

2014 में जब लोकसभा चुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा तो नीतीश कुमार ने नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार कर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतनराम मांझी को कुर्सी सौंप दी थी। अब अध्यक्ष पद छोड़ दिया है। इस बार के विधानसभा चुनाव में पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो फिर तरह- तरह की आशंकाएं उनके समर्थकों के मन में घर कर रही थी। इसके पीछे सच्चाई भी थी। नीतीश कुमार की खामोशी बहुत कुछ बयां कर रही थी। उन्होंने चुनाव परिणाम आने के बाद एनडीए नेताओं के साथ पहली बैठक में ही मुख्यमंत्री पद स्वीकार करने से मना कर दिया। जदयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में उन्होंने दोहराया भी कि उन्हें सीएम बनने की तनिक भी इच्छा नहीं थी। उनसे पीएम ने बात की। वह चाहते थे कि भाजपा का कोई नेता सीएम बने। अब भी सीएम बने रहने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है।

हालांकि बिहार चुनाव में वह एनडीए के सीएम पद के घोषित चेहरा थे और गठबंधन को स्पष्ट बहुमत भी मिला। बावजूद इसके जदयू को अपेक्षित सफलता नहीं मिलने की कसक उन्हें सालती रही। सीएम का पद भले ही भाजपा के अनुरोध पर उन्होंने स्वीकार कर लिया, लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद उन्होंने अंतत: छोड़ दिया है। विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद से वह लगातार पार्टी नेताओं, पराजित उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं से फीडबैक् लेते रहे। इस बार के विधानसभा चुनाव में जदूय को अपेक्षित सफलता नहीं मिलने के पीछे सियासी प्रपंच को भी बड़ा कारण माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव में एनडीए और खासकर जदयू का प्रदर्शन शानदार रहा था। उसने 17 में 16 सीटों पर जीत हासिल की।

वैसे मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष की दोहरी जिम्मेदारी निभाना चुनौतीपूर्ण था। पार्टी का दूसरे प्रदेशों में विस्तार और राज्य के अंदर दूसरी पीढ़ी तैयार करने की चुनौती भी कम बड़ी नहीं है। पार्टी के अंदर जोश भरना जरूरी है। इसके लिए एक स्वतंत्र अध्यक्ष की आवश्यकता उन्होंने महसूस की है। नीतीश कुमार शुरू से जदयू के चेहरा और नेता रहे हैं। लेकिन जदयू की स्थापना काल दिसंबर 2003 से अप्रैल 2006 तक जॉर्ज फर्णांडिस, 2006 से अप्रैल 2016 तक शरद यादव और इसके बाद से नीतीश कुमार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। गौरतलब है कि अध्यक्ष की जिम्मेदारी से मुक्त रहते नीतीश कुमार पार्टी को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में सबसे बेहतर योगदान करते रहे। दोहरी जिम्मेदारी होने से वह पार्टी को अपेक्षित समय नहीं दे पा रहे थे। उन्होंने पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद कहा है कि वह दूसरे राज्यों में भी पार्टी को मजबूत करने में समय देंगे।