आस्था का केंद्र बना है गढ़पुरा का बड़ी दुर्गा मंदिर

प्रखंड मुख्यालय स्थित बड़ी दुर्गा मंदिर आज भी आस्था का केंद्र बना हुआ है।। यहां शारदीय नवरात्र के दौरान भक्तों की भीड़ लगी रहती है। 153 वर्षों से यहां लगातार पूजा हो रही है। यहां की दुर्गा पूजा तामझाम और आधुनिकता से बिल्कुल अलग है। पंडालों के निर्माण और सजावट पर यहां हजारों खर्च नहीं होते। यहां सादगी से मां की पूजा करने की परंपरा है। यहां माता के वैष्णवी रूप की पूजा होती है। बुद्धिजीवियों का मानना है कि अपनी वैदिक परंपरा आध्यात्म और लोक संस्कृति को सही मायने में यहां सुरक्षित और संरक्षित रखा जा रहा है। सप्तमी से लेकर दसवीं तक तो यहां मंदिरों में प्रवेश करने की जगह नहीं रहती। मंदिर के पुजारी पीतांबर मिश्र बताते हैं कि देवी को सच्चे मन से पूजने वाला कोई भी भक्त आज तक यहां से खाली हाथ नहीं लौटा है। मन्नतें पूरी होने पर मंदिर में वेद पाठ, सप्तशती पाठ, कन्या पूजन, ब्राह्मण भोजन व दान देकर लोग मां को प्रसन्न करते हैं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि 21 अप्रैल 1930 को नमक सत्याग्रह आंदोलन के समय में बिहार केसरी डॉ श्रीकृष्ण सिंह और उनके अन्य सहयोगी माता की पूजा अर्चना कर अंग्रेजों के खिलाफ नमक कानून को तोड़ने सत्याग्रह स्थल गए थे। आजादी से पूर्व यहां माता के पिंडी रूप की पूजा होती थी, लेकिन बाद में स्वतंत्रता सेनानी बनारसी प्रसाद सिंह ने मंदिर का निर्माण करवाया और तबसे उनके वंशज प्रतिवर्ष प्रतिमा का निर्माण करवाते आ रहे हैं। बड़ी दुर्गा स्थान पूजा समिति के अरुण कुमार सिंह बताते हैं कि बड़ी दुर्गा मां के प्रतिमा को कंधों पर उठाकर विदाई देने की परंपरा है। उस दौरान माता के अंतिम दर्शन के लिए लोग इकट्ठा रहते हैं। पुराने मंदिर के स्थान पर यहां नए सिरे से भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। अगले वर्ष तक यह मंदिर बनकर पूरी तरह तैयार हो जाएगा।

Source-Hindustan