बिहार में शराब बंदी कानून को बंद करने की उठ रही है मांग – क्या सच में बंद होगा कानून

डेस्क : बिहार में शराबबंदी कानून इसलिए लाया गया था ताकि बिहार का उद्धार हो सके। सरकार को लगा था की अन्य राज्यों की ओर निजी अर्थव्यवस्था बढ़ जाएगी, कुछ समय बाद ऐसा कुछ भी नहीं हुआ बल्कि खुले में शराब बिकनी तो बंद हुई लेकिन घर-घर में इसका इस्तेमाल होने लगा। जिसके तहत हाल ही में आई मानव संसाधन की रिपोर्ट बताती है कि 15% से भी ज्यादा लोग बिहार में इस वक्त शराब का सेवन कर रहे हैं जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं। अब इस नतीजे एवं आंकड़ों को देखने के बाद कई कार्यकर्ता बिहार सरकार से यह सवाल उठा रहे हैं कि शराबबंदी कानून को अब खत्म करा जाना चाहिए।

शराब बंदी कानून 2016 से लागू है उस वक्त कांग्रेस पार्टी मुख्यमंत्री के अधीन ही आती थी जिसने यह कार्य को एक नेक कार्य समझ कर सत्तारूढ़ सरकार का जमकर साथ दिया था। लेकिन, हकीकत में शराबबंदी सिर्फ नाम मात्र की है। अब यह सिर्फ पैसा कमाने का जरिया बन गई है।जबसे शराबबंदी हुई है तब से और ज्यादा लोग शराब उत्पादक के कार्य में लग गए हैं और यह कार्य वह अपने घरों से ही चला रहे हैं लोग इसकी होम डिलीवरी भी कर रहे हैं।

शराब बंदी में राजनितिक पार्टियों के नेता के नाम भी पाए गए और कभी-कभी तो पुलिस भी इस अपराध में लिप्त पाई गई। साथ ही कई उम्र के नौजवान जिनकी उम्र पढ़ने-लिखने की है वह शराब डिलीवरी का काम करने लग गए हैं जिससे पैसा कमा रहे हैं। साथ ही शराब के पर लोग खर्चा करने को भी तैयार हैं ऐसे में गरीब परिवार और गरीब होता चला जा रहा है क्योंकि अब लोगों को दो-तीन दिन गुना ऊंचे दाम पर शराब को खरीदना पड़ रहा है। जहरीली शराब बिकने का भी खतरा बढ़ गया है क्योंकि असली शराब के लिए लाइसेंस लेना होता है लेकिन यह प्रक्रिया बंद है। उसके बाद कांग्रेस विधायक अजीत शर्मा का आरोप है कि बिहार के राजस्व में भी काफी कमी आ गई है जिस कारण अन्य क्षेत्रों में विकास नहीं हो पा रहा है शराब बंदी कानून की समीक्षा होनी बेहद ही जरूरी है साथ ही अगर इसको खत्म किया जा सके तो यह बिहार के लिए बेहतर रहेगा जिससे सरकार की आय बढ़ेगी और वह अन्य क्षेत्रों में नई तरह की रोजगार ला सकेगी।