लोगों के घर कभी पेट पालने के लिए करती थी झाड़ू-पोछा दुलारी देवी, फिर मिथिला पेंटिंग ने दिलाई पहचान, राष्ट्रपति देंगे पद्म श्री सम्मान

डेस्क : भारत शुरू से ही कला और संस्कृति की छाप दूसरे देशों में छोड़ रहा है। भारत की कला और संस्कृति की अपनी ही कहानी है और प्राचीन काल से भारत कला और संस्कृति के दम पर पूरी दुनिया में फेमस है। मल्लाह जाति के लोगों ने अपनी कला के दम पर पूरे देश में स्वीकृति बटोरी है। ऐसे में मल्लाह जाति से आने वाली दुलारी देवी को पद्मश्री पुरस्कार दिया जाएगा।

दुलारी देवी बिहार के मधुबन जिले के रांटी गांव की रहने वाली हैं और एक भी कक्षा में नहीं पढ़ी हैं। लेकिन बिना पढ़ाई लिखाई के पद्मश्री पुरस्कार तक पहुंचना आसान नहीं था उनका जीवन बेहद संघर्ष पूर्ण रहा है। उनकी मात्र 12 वर्ष में ही शादी हो गई। उन्होंने अपनी जिंदगी में शुरुआत झाड़ू और पोछे लगाने से की। वह अपने घर के आँगन को भी माटी से लिपती थी। धीरे धीरे उन्होंने अपनी कल्पनाओं को इस मिटटी से अकार देना शुरू किया और फिर वह मधुबनी तस्वीर भी बनाने लग गईं।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी उनको सम्मान दिया है। इसीके साथ उनकी कला की प्रशंसा की है। उनका जब जीवन में मधुबनी पेंटिंग पेंटिंग में प्रख्यात कलाकार कपूरी देवी से हुआ तो उनकी जिंदगी में बदलाव आया। वह लकड़ी की कूंची बनती तो उसमें भी मधुबनी की कला बिखेरती जो देखने में सबको अच्छी लगती थी। वह अब तक 6000 से ऊपर मधुबनी कला बना चुकी हैं और राज्य पुरस्कार भी हासिल कर चुकी हैं। कई पुस्तकों में दुलारी देवी का चुका है। कई पुस्तकों में इनकी पेंटिंग मुख्य तस्वीर के तौर पर चुनी गई है। पटना में बिहार संग्रहालय के उद्घाटन के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दुलारी देवी को ख़ास तौर पर आमंत्रण दिया था। वहां कमला नदी की पूजा वाले दिन इनके द्वारा बनाई गई एक पेंटिग को जगह दी गई है।