डेस्क : 37-वर्षीय चिराग पासवान और उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने NDA गठबंधन से बाहर निकल चुकी है “मोदी तुझसे बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं…” कह कर।लेकिन कहीं रणनीति यह तो नहीं है कि नीतीश कुमार के सामने चिराग ‘वोट-कटवा’ की भूमिका में रहे, जिसका फायदा BJP नतीजों में उठाएगी।क्योंकि चिराग ने “मोदी तुझसे बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं…” के नारे देकर गठबंधन से निकल आने की धमकी पर खरा उतरकर दिखा दिया है, जिस गठबंधन के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी साझीदार हैं।
अब LJP मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) के खिलाफ प्रत्याशी उतारेगी, लेकिन उन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी, जो भारतीय जनता पार्टी (BJP) के हिस्से में होंगी। पर साथ ही में, केंद्र में चिराग पासवान और नीतीश कुमार, दोनों की ही पार्टियां BJP के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हिस्सा बनी रहेंगी।पिता रामविलास पासवान केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में उपभोक्ता मामलों, खाद्य तथा सार्वजनिक वितरण विभाग के कैबिनेट मंत्री हैं। फ़िलहाल वह अस्पताल में हैं, वही कुछ साल पहले बॉलीवुड में भाग्य आज़मा चुके चिराग को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से ‘ट्रेनिंग’ मिल रही है। दो दिन पहले जब चिराग ने ‘नीतीश को नहीं, BJP को हां’ की घोषणा की थी, तब उन्होंने दिल्ली में अमित शाह से लम्बी बैठक की थी।
राजनीति के अखाड़े में कयास लगाए जा रहे है कि आजकल जो कुछ भी चिराग कह रहे या कर रहे है उसकी रूपरेखा अमित शाह ने तैयार की है, और रणनीति यह है कि नीतीश कुमार के सामने चिराग ‘वोट-कटवा’ की भूमिका में रहेंगे, जिससे नतीजों में BJP को लाभ होगा।इस तरह से जब विधानसभा चुनाव परिणाम आ जाएंगे, तो इससे BJP के हाथ में नीतीश कुमार से सौदेबाज़ी के लिए ज़्यादा ताकत मौजूद रहेगी।अगर BJP का नतीजा बहुत अच्छा रहा, तो हो सकता है कि वह नीतीश कुमार से छुटकारा पाने की स्थिति में ही आ जाए और पासवान के समर्थन से सरकार का गठन कर ले।इस तरह चिराग कई सीटों पर ‘दोस्ताना मुकाबला’ करते हुए नज़र आएंगे और ऐसे प्रत्याशी उतार सकते हैं, जो दरअसल दौड़ में न हों। वे उन वोटों को काटेंगे, जो नीतीश की तरफ जा सकते हैं, और नतीजतन BJP का प्रत्याशी जीत जाएगा।
चूँकि राज्य में पासवान सबसे बड़ा दलित समुदाय है, और कुल आबादी का साढ़े चार फीसदी है। चिराग की महत्वाकांक्षा पार्टी की पहुंच को बढ़ाने की है।इस विधानसभा चुनाव का एक और पहलू भी है – लालू प्रसाद यादव, कांग्रेस तथा वामदलों का विपक्षी गठबंधन, जिसकी अगुवाई लालू प्रसाद के 30-वर्षीय पुत्र तेजस्वी यादव कर रहे हैं।अब यहाँ चिराग कि सोच कुछ यूँ है कि नीतीश कुमार के खिलाफ एन्टी-इन्कम्बेंसी लहर (सत्ता के खिलाफ लहर) पर्याप्त है, जिसकी बदौलत अपना जनाधार बढ़ाया जा सकता है।
नीतीश कुमार राजनैतिक कलाबाज़ियों के मामले में दिग्गज हैं, और अपनी इसी सरकार को बनाए रखने के लिए साझीदार बदल चुके हैं (उन्होंने अपने पुराने सहयोगी BJP का साथ छोड़कर कांग्रेस व लालू यादव के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, और फिर उन्हें छोड़कर BJP का दामन थाम लिया था), लेकिन इस बार ऐसा लगता है, वह पीछे छूट सकते हैं. BJP के एक केंद्रीय नेता का कहना था कि अवसर देखकर साझीदार बदलने वाले के तौर पर नीतीश कुमार की छवि ज़ाहिर हो चुकी है। उन्होंने कहा, “हर बिहारी जानता है कि वह ‘कुर्सी कुमार’ हैं… जहां कुर्सी, वहां नीतीश…” ।इन दिनों नीतीश कुमार अपनी अंतरात्मा की उस आवाज़ को लेकर भी चुप हैं, जिसने उनके दावे के मुताबिक उनकी राजनीति की दिशा तय की है। नीतीश कुमार ने अतीत में साझीदार बदलने के फैसले को अंतरात्मा की आवाज़ बताया था। लेकिन अब उन्हें राजनैतिक अंतर्ज्ञान से काम लेना होगा।
वही अगर चिराग चाहते हैं कि उन्हें गंभीरता से लिया जाए, तो उन्हें अपने नेतृत्व को उभारना होगा, और आगे बढ़कर काम करना होगा।बिहार में 243 विधानसभा सीटें हैं। BJP और नीतीश कुमार संभवतः 119-119 सीटों पर लड़ेंगे, लेकिन नीतीश को पांच सीटें जीतनराम मांझी को भी देनी होंगी, सो, वह BJP की तुलना में कम सीटों पर लड़ेंगे। यह ऐसा दृश्य है, जिसकी कुछ साल पहले तक कल्पना भी असंभव सी थी।अगर आप कन्फ्यूज़ है और इतना कन्फ्यूज़न को बनाये रखने के लिए काफी है, तो भी बस, देखते रहिए – हर बढ़िया बिहारी राजनैतिक गाथा की तरह इसमें भी एक शानदार ट्विस्ट है आपके लिए उपलब्ध रहेगा।