बिहार चुनाव का पीछा नहीं छोड़ती भैंस, जानिए भैंस और चुनाव का रिश्‍ता

डेस्क : बिहार विधानसभा चुनाव जोर-शोर पर हैं ऐसे में प्रचार-प्रसार करने के लिए उम्मीदवार नए और अनोखे तरीके अपना रहे हैं, इस दौरान अगर भैंस का जिक्र ना हो ऐसा हो नहीं सकता चाहे वह भोजपुरी फिल्में हो या फिर कोई चुनावी रैली। भैंस का सहारा ले ही लिया जाता है। ऐसा इसलिए करा जाता है ताकि ग्रामीण इलाके के लोग एक अपनापन महसूस कर सकें और इससे एक ठेठ बिहारी की छाप नजर आती है जो काफी मददगार साबित होती है चुनाव प्रचार के दौरान।

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की लोकप्रियता भी भैंस से ही जुड़ी है दरअसल वे एक बेहद गरीब परिवार से आते हैं और गरीब परिवारों में पशुपालन के जरिए ही गुजर बसर चलती है। ग्रामीण इलाके के बच्चे स्कूल ना जाकर पशु पालन का कार्य ज्यादातर किया करते थे और आज भी कई इलाकों में आपको ऐसी छवि देखने को मिल जाएगी। इसी वजह से लालू प्रसाद यादव ने बिहार में चरवाहा विद्यालय की शुरुआत करी थी

भैंस की सवारी जब करी उम्मीदवार ने तो उमड़ पड़ी भीड़

आपको बता दें कि 6 अक्टूबर मंगलवार के दिन पालीगंज विधानसभा क्षेत्र में भी कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला, जहां पर एक निर्दलीय उम्मीदवार भैंस पर बैठ कर अपना नाम दर्ज करवाने पहुंचे थे, फिर क्या था उन्हें देखने के लिए लोग भी आसपास से इकट्ठा हो गए और भीड़ लग गई। लोग उम्मीदवार के अजब-गजब वेश को देखते हुए खूब ठहाके लगा रहे थे। पालीगंज विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार कपिल गोप भैंस के ऊपर बैठकर आए और अपना नाम दाखिल किया इस दौरान कपिल को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आए थे।

ऐसा ही किस्सा जमुई के झाझा विधानसभा क्षेत्र के झा झा गांव में देखने को मिला जहां पर सामाजिक कार्यों में उम्मीदवार बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते नजर आए। यहां पर उम्मीदवार सूर्य वत्स भैंस पर सवार होकर चुनाव के प्रचार कर रहे हैं। वह 10 सालों से महात्मा गांधी की तरह एक ही धोती पहनते हैं और ओढ़ते हैं। लोगों का कहना है कि भारतीय संस्कृति के साथ-साथ महात्मा गांधी के गांव स्वराज के सपनों को वापस जीवित बनाए रखने के लिए यह लिबास जरूरी है। आपको बता दें कि सूर्यवंश 35 वर्षीय है और 10 साल पूर्व समाज सेवा का प्रण लेकर यह लिबास ग्रहण कर रखा है 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्हें 35 वोट मिले थे।