डेस्क : बिहार चुनाव 2020 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से अलग हो चुकी लोक जनशक्ति पार्टी की हर गतिविधि पर महागठबंधन द्वारा नजर रखी जा रही है बताया जा रहा है कि जिस तरह से वह नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है उस पर पैनी नजर है। और महागठबंधन को लग रहा है कि लोजपा स्वर्ण वोट बैंक में सेंध लगा सकती है।
बिहार की चुनावी रणनीतियों को लेकर लगातार समीक्षा चल रही है ऐसे में रणनीतिकारों ने बीते चार-पांच दिनों में लोजपा में शामिल हुए उम्मीदवारों की प्रोफाइल चेक कर रही है।भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाने वाले राजेंद्र सिंह एवं उषा विद्यार्थी बड़े उदाहरण हैं जो कि अभी लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले हैं।महागठबंधन की तरफ से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि चिराग पासवान कि अकेले मैदान में उतरने से एवं कुछ दर्जनों सीटों पर उम्मीदवारों की व्यक्तिगत हैसियत से वहां के दलित समुदाय के एक वर्ग की तरफ ज्यादा जुड़ाव एवं झुकाव की वजह से लोजपा चुनाव को त्रिकोणीय बना देगी।
परंतु झुकाव वाली सीटें इस त्रिकोणीय मुकाबले में तो जेडीयू के खाते में होने वाली है। कॉन्ग्रेस के मुताबिक जेडीयू और आरजेडी के बीच जिन सीटों पर सीधे मुकाबला होना है उसमें महागठबंधन को तीसरे उम्मीदवार के आने का सीधा फायदा मिलेगा। इसी तरह के सियासी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए आरजेडी और कांग्रेस ने सीटों का बंटवारा किया था। भारतीय जनता पार्टी से सीधे मुकाबले वाले ज्यादातर सीटें आरजेडी ने कांग्रेस के लिए छोड़ रखी है जिनमें काफी शहरी सीटें मौजूद है।