सकारात्मक और नकारात्मक के बहस पर युवा कोरोना फाइटर की तीखी टिप्पणी , सन्देह हो तो श्मशान हो आइये…

न्यूज डेस्क : देश भर में बढ़ रहे कोरोना संक्रमण के बीच विभिन्न मीडिया संस्थानों द्वारा और सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहे खबरों की नकारात्मक और सकारात्मक परिभाषित होने का बहस छिड़ गया है। वहीं इस बहस में बुद्धिजीवी वर्ग अलग अलग धरा में बंटा हुआ दिख रहा है, जहाँ लोगों के बीच अब सकारात्मक खबरों की बात एक बहस बनता दिख रहा है। इस बीच हालिया समय में चर्चा का विषय बन चुके इस मुद्दे पर साल 2020 में कोरोनाकाल के प्रथम चरण में कोरोना से जंग जीते हुए युवा कोरोना फाइटर ने इस मुद्दे पर अपनी तीखी टिप्पणी दी है।

आपबीती : बोल कर नही कर के दिखाइए सकारात्मक बीते जुलाई स्मेल और टेस्ट खत्म होने के बाद जाँच उपरांत मैं भी कोरोना पॉजिटिव हो गया था,थोड़ी सी सतकर्ता एवं डॉक्टरों के सलाह के अनुपालन के बाद ही मुझे कोरोना निगेटिव मान लिया गया था,दोबारा तो जाँच कभी हुआ नही तो मैं आज भी पॉजिटिव ही मानता हूँ खैर मुझे लगता है कोरोना के दूसरे स्ट्रेन और फर्स्ट स्ट्रेन में बेसिक फर्क इसके व्यापक प्रभाव , मृत्युदर और तंत्र के ध्वस्त होने से उठे हाहाकार के रूप में है.

आज का वर्तमान हालात को देख कर ये किसी से भी बोलना बिल्कुल हास्यस्पद है कि आप सकारात्मक रहें , अधिक परेशान ना हो क्योंकि बदलते हालत में सकारात्मक रहने से ही सब कुछ सही हो जाएगा ये भी राम ही जानते हैं, इंसान तो नही जान रहा है । प्रैक्टिकली सोचिए अगर किसी बेटा के पिता जी वेंटिलेटर पर हो या वहाँ से उठ कर उसके कंधे पर उसे आप हजार बार सकारात्मक रहने के लिए बोल कर भी सकारात्मक नही कर सकते हैं,वो औरत सकारात्मक नही हो सकती जो इस नकारात्मक हवा के तूफान में दब कर अपने पति को काल के गाल में समा चुकी हो ? वो आप को बेबस कर सकती है अपनी तरह भावुक और बेचैन होने के लिए, एक पिता के लिए गाड़ी पर भर कर जा रही ऑक्ससीजन की सिलिंडर कभी इतनी महत्वपूर्ण नही लगी होगी जितनी आज अपने बेटे के साँसों की नली में देख कर , आप इनसे भी सकारात्मकता की उम्मीद नही कर सकते हैं क्योंकि इस सिलेण्डर के लिए उसने जीवन की सारी कमाई तो लगाई ही लगाई,पता नही किस चौखट सिर नही फोड़ा होगा..

आईसीयू में पड़ी माँ के लिए कोई बेटा रो रहा है तो उसकी आँसू मत पोछिये,उससे पूछिये की ऑक्सीजन,रेमडिसिवर या प्लाज्मा? और लग जाइये उस मोती जैसे आँसू के दाने हाथ पर लेकर,यकीन मानिए इससे ज्यादा पॉजिटिव नेस कुछ नही दे सकता ना आप को और ना उस बेटे को ,प्रयास कीजिये मदद की मांग पर वेरिफाइड सोर्स पहुँचाने की , तन-मन से लग जाने की कैसे भी मदद की एक मद भी किसी के लिए खुशियों के अम्बार तोड़ लाये, सोशल मीडिया पर लाश गिनने से ज्यादा ध्यान बेड गिनिए,प्लाज्मा डोनेट करने के लिए खुद भी हिम्मत कीजिये और दूसरे को भी उत्साहित कीजिये, डोनेट करने वाले के लिए ताली बजाइये,ढोल भी बजा दीजिये क्योंकि कोई खिलाड़ी ,कोई हीरो आप के लिए इतना रोमांच कभी नही बेच सकता आप को ..

थोड़े से नॉर्मल कीजिये इस दशा को , देखिए इस नकरात्मकता की लहर में सकरात्मकता की लहर कैसे बनता है, किसी को सिर्फ खुद के होने का अहसास करवाइए,एम्बुलेंस के लिए रास्ता क्लियर रखिये,दवाई दूकान पर पहुँचने वाले अपरिचितों से भी हाल चाल पूछते रहिए,बाँकी मन मे कोई सन्देह हो तो श्मशान हो आइये…

लेखक – मोनू सिंह गौतम , विधि के छात्र
( ये लेखक के निजी विचार हैं