क्यों की जाती है कन्या पूजन, जानें क्या है इसका महत्व?

शारदीय नवरात्रि चल रही है और हर ओर दुर्गा पूजा की धूम है, माता के जयकारे लग रहे हैं। भक्तजन जहां नौ दिनों तक व्रत करते हैं वहीं कन्या पूजन करके मां का आशीर्वाद भी लेते हैं। माना जाता है कि कन्या सृष्टिसृजन श्रृंखला का अंकुर होती है।

ये पृथ्वी पर प्रकृति स्वरूप मां शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं जैसे श्वास लिए बगैर आत्मा नहीं रह सकती।वैसे ही कन्याओं के बिना इस सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कन्या प्रकृति रूप ही हैं अत: वह संपूर्ण है।

आइये यहां जानते हैं कन्या पूजन क्यों किया जाता है और क्या है इसका महत्व ….

ये है कन्या पूजन की धार्मिक मान्यता

कन्या पूजन से जुड़ी धार्मिक मान्यता पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि सृष्टि सृजन में शक्ति रूपी नौदुर्गा, व्यवस्थापक रूपी 9 ग्रह, चारों पुरुषार्थ दिलाने वाली 9 प्रकार की भक्ति ही संसार संचालन में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।

जिस प्रकार किसी देवता की मूर्ति पूजा करके हम संबंधित देवता की कृपा प्राप्त कर लेते हैं, उसी प्रकार मनुष्य प्रकृति रूपी कन्याओं का पूजन करके साक्षात् भगवती की कृपा पा सकते हैं।

साथ ही यह भी माना जाता है कि नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है। अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं।

कबसे शुरू होती है कन्या पूजा

नवरात्रि के पहले दिन ही कलश स्थापना के साथ ही घर में मां दुर्गा को विराजित किया जाता है, अखंड ज्योत जलाई जाती है। पूरे नौ दिनों तक व्रत रखा जाता है। हर दिन मां के अलग रूप की पूजा भा की जाती है।

वहीं नवरात्रि की सप्तमी तिथि से कन्या पूजन शुरू होता है। इस दौरान नौ कन्याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत की जाती है। उन्हें भोजन करवाकर उनकी पूजा की जाती है, दक्षिणा दी जाती है।
दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर इनका स्वागत किया जाता है। माना जाता है कि कन्याओं का देवियों की तरह आदर-सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं।

आखिर कब किया जाए कन्या पूजन

देखा जाए तो कई लोग सप्‍तमी से कन्‍या पूजन शुरू कर देते हैं लेकिन जो लोग पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वह तिथि के अनुसार नवमी और दशमी को ही कन्‍या पूजन करने के बाद प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलते हैं।

शास्‍त्रों के अनुसार कन्‍या पूजन के लिए दुर्गाष्‍टमी के दिन को सबसे ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण और शुभ माना गया है। इसी दिन अधिकतर भक्तजन अपने घर में कन्या पूजन करते हैं।

ऐसे पूरे विधि-विधान से करें कन्या पूजन …

– सबसे पहले तो आप ये जान लें कि कन्‍या भोज और पूजन के लिए कन्‍याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित कर लें ताकि बाद में आपको इन्हें ढूंढना न पड़े।

– मुख्य कन्या पूजन के दिन इधर-उधर से कन्याओं को पकड़ के लाना सही नहीं होता है।

– गृहप्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं।

– अब इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छूकर आशीष लेना चाहिए।

– उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए।

– फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं।

– भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्‍य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें।

जानें किस उम्र की कन्या के पूजन से होता है क्या लाभ

– वैसे तो नवरात्रि में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है।

– दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं।

– तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्‍य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।

– चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है।

तो ये है कन्या पूजन का महत्व

दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि “कुमारीं पूजयित्या तू ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम्” अर्थात दुर्गापूजन से पहले कुंवारी कन्या का पूजन करने के पश्चात् ही मां दुर्गा का पूजन करें।

धर्मग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात् माता का स्वरूप मानी जाती है।

कन्या पूजन के ध्यान और मंत्र इस प्रकार हैं …

मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्।

नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्।।

जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि।

पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।

।। कुमार्य्यै नम:, त्रिमूर्त्यै नम:, कल्याण्यै नमं:, रोहिण्यै नम:, कालिकायै नम:, चण्डिकायै नम:, शाम्भव्यै नम:, दुगायै नम:, सुभद्रायै नम:।।