देश में घटित हिंसा व्यथित करती है :एएसपी अमृतेश कुमार जरूर पढ़ें

बेगूसराय : नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश के कई राज्यों में आज भी विरोध प्रदर्शन में हिंसा को लेकर बेगुसराय के एसएसपी अमृतेश कुमार के कलम से

भारतीय नागरिक होने के नाते देश में घटित हिंसा व्यथित करती है -पहली , हिंदुस्तान में यदि कोई कानून बनाना है तो उसका एक सिस्टम है कि बिल को लोकसभा और राज्यसभा से पारित किया जाए और उस पर माननीय राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हों।

दूसरे, ‘कानून संवैधानिक है अथवा नहीं ‘ इसकी जाँच के लिए सुप्रीम कोर्ट है।

अभी कुछ दिन पहले संवैधानिक तरीके का पूर्ण पालन कर नागरिकता संसोधन बिल संसद से पास हुआ । इस बिल में किसी की नागरिकता छिनने की बात नहीं है बल्कि तीन देशों के धार्मिक रूप से प्रताडित अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने में छूट देने की बात है और उसमें भी वर्ष 2014 की लिमिट लगाई गई है। इन तीन देशों के अल्पसंख्यकों के लिए लगभग सभी दलों के राजनेताओं ने समय-समय पर आवाज उठाई है। प्रश्न उठता है कि ये तीन देश ही क्यों ? तो इसका उत्तर हमारे काम्प्लेक्स इतिहास और स्वतंत्रता सेनानियों की भावनाओं में छुपा है। इसके अलावा अन्य विदेशी लोग भी समुचित नियमों के तहत भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए पूर्ववत आवेदन कर सकते हैं और नियमों के अनुकूल उन्हें नागरिकता मिलती रही है और आगे भी मिलेगी।

बिल पास होने के बाद दौर शुरू हुआ इस संबंध में भ्रम फैलाने की। इसके बारे में ऐसी बातें कही गई जिनका इस बिल से कोई लेना देना नहीं है। हम इस बात के लिए स्वतंत्र हैं कि किसी भी चीज का समर्थन करें या विरोध पर यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम पहले विषयवस्तु को जान लें। सामान्य आदमी से लेकर बड़े फ़िल्म अभिनेता भी इनको लेकर समुचित जानकारी नहीं रखते हैं। दूसरा भ्रम NRC को लेकर है। पूरे देश के लिए NRC को लेकर अभी कोई गाइडलाइन आया नहीं है और जो कानून अभी आया ही नहीं है उस पर विवाद सही नहीं है।

एक मिनट के लिए यह मान भी लें कि ये कानून संवैधानिक नहीं हैं तो विरोध का रूप क्या हो ?? विरोध के लिए सुप्रीम कोर्ट का रास्ता खुला है और इसके अलावा सत्याग्रह , शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन और इस तरह के अनेक रास्ते हैं पर विरोध का रूप देखिए –

  1. आगजनी ,
  2. सरकारी सम्पत्ति का नुकसान,
  3. पुलिस और प्रशासन के प्रति आक्रामक व्यवहार,
  4. हिंसा और मजहबी नारे।

विरोध के ये स्वरूप गलत हैं। भारत सबका है तो इसे बचाए रखने की जिम्मेवारी भी सबकी है। निष्कर्ष यह है कि इस देश में रोड पर हिंसा के बल पर नियम नहीं बनाए जा सकते । हजारों साल के संघर्ष के पश्चात मिले इस संसदीय व्यवस्था का पालन हमें करना ही होगा। हमें दूसरों के बहकावे में नहीं आना चाहिए बल्कि किसी भी कानून को खुद पढ़कर समझना चाहिए। लोकतंत्र में विरोध और असहमति का अहम स्थान है और वह रहना ही चाहिए पर हिंसक व्यवहार अस्वीकार्य है और हिंदुस्तान में उसके लिए कोई जगह नहीं है।

जय हिंद !!