World Environment Day : इस साल की थीम पारिस्थितिक तंत्र की बहाली, जिले में पर्यावरण असंतुलित होने का प्रमाण जल पारिस्थितिक तंत्र खतरे में …

न्यूज डेस्क : कोरोनाकाल में पर्यावरण के अवयव भी जंग जीतने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। कहा जाय तो संपूर्ण मानवता का अस्तित्व पर्यावरण और प्रकृति पर ही तो निर्भर है। 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस हर साल मनाये जाते हैं। फिर अगले साल तक इस पर कई सार्थक पहल को साकार रूप प्रदान करने की कोशिश की जाती है। जिसमें से कुछ तो सफलीभूत होते हैं और अधिकांश चीजें मूर्त रूप धारण करने के इंतजार में ही रहते हैं। विश्व पर्यावरण दिवस पर इस साल की थीम पारिस्थितिक तंत्र की बहाली है। दरअसल पारिस्थितिक तंत्र वैसा तंत्र होता है। जिसमें सजीवों और निर्जीवों के बीच के सम्बंध की रचना और कार्य को प्रदर्शित करता है। ये एक दोनों पर निर्भर हैं। भूभाग पर कई प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र हैं। जिसमें जल , खरा जल , घास , पर्वत सभी का पारिस्थितिक तंत्र में है।

जल पारिस्थितिक तंत्र खतरा से गुजर रहा : बेगूसराय जिला में जल पारिस्थितिक तंत्र है। जिले में गंगा , बूढ़ी गंडक , बलान , बैंती नदी, कावर झील सहित कई जलाशय हैं। नदी और कावर झील होने के बावजूद इन दो जल स्रोतों के गाद की सफाई दशकों से नहीं हुई । गंगा के पानी को छोड़ दे तो अन्य नदियों और कावर झील में जलकुंभी भी पाए जाते हैं। जलकुंभी को जर्मनी , टेरर ऑफ बंगाल भी कहा जाता है। यह अत्यधिक खतरनाक है। यह पानी में सर्वाधिक ऑक्जिन लेता है। जिससे जल में अन्य जीवों को इसके जीवन से खतरा होता है।

जलकुंभी के पानी में पाए जाने का प्रभाव यह होता है कि भविष्य में जलीय क्षेत्र धीरे धीरे मैदानी भूभाग में परिवर्तित होने लगता है। वहीं सरकारी व निजी रूप से लगाये गए वनों में अंधाधुंध वन कटाई लगातार जारी है। जिससे जलचक्र प्रभावित होकर बारिश की कमी हो रही है । विगत सालों में भूमिगत जलस्तर का शोषण होने से जल स्तर भी गिरा है। जल , जमीन , आसमान और जीव जंतु होने बाद भी इको सिस्टम के कारण पर्यावरण असंतुलित हो रहा है। आज कृत्रिम वातावरण को सुसज्जित व सुविधा सम्पन्न करने के कारण प्राकृतिक वातावरण का शोषण और दोहन बेरोकटोक हो रहा है।

हमारा पर्यावरण प्रदुषित हो रहा है । जिसके कारण बहुत सारे दुष्यपरिणाम दोषी मनुष्य के साथ अन्य जीवो का अस्तित्व खतरे में होते जा रहा है।झील के जल क्षेत्र में जैव विवधता प्रभावित हो रही है। निरंतर कमी हो रही है। जल के स्रोत बंद होने कारण नियमित जल संग्रह नहीं हो पा रहा है। गाद निरंतर झील की गहराई को कम कर रहे हैं। जिससे कावर झील की जल जमाव की क्षमता प्रभावित हुई है। इसके दुष्प्रभाव के तौर पर कावर झील पक्षी बिहार में प्रवासी पंक्षियों के संख्या में भी कमी हुई है। जो पर्यावरण के लिहाज से असंतुलन का प्रमाण है।

कावर की प्रकृति पर झील में अवसाद और प्रदूषण काफी चिंताजनक प्रभाव : बीते दशकों में साल दर साल रामसर साइट कावर झील का जल प्लावित भूभाग सिकुड़ता जा रहा है। झील के वेटलैंड के सूची में रामसर साइट घोषित करने के बाद भी 36% की कमी आयी। उद्धारकर्ता जलोढ़ पारिस्थितिक प्रतिष्ठान सोसायटी के अनुसार, हर साल लगभग 3.8 सेमी गाद काँवर झील में जमा होती है, जिससे झील की गहराई कम हो जाती है। प्रदूषण और अपशिष्ट सहित अन्य प्रमुख समस्या से झील को भी खतरा हो रहा है। इंभायरोमेंटल असेसमेंट ऑफ कावर टाल वेटलैंड पर शोध करने बाले आरसीएस कॉलेज मंझौल के भूगोल विभागाध्यक्ष प्रो रविकांत आंनद ने अपने शोध में इस बात के बारे में भी जिक्र किये हैं, कि कावर की प्रकृति पर झील में अवसाद और प्रदूषण काफी चिंताजनक प्रभाव है। जो कि पर्यावरण के लिए खतरनाक है।