बेगूसराय से नेपाल बॉर्डर तक पहुंच रही मोहनपुर के तरबूज की मिठास

न्यूज डेस्क : बेगूसराय सदर प्रखंड के मोहनपुर में तरबूज की परंपरागत खेती होती है। यहां उपजने बाले देशी तरबूज के स्वाद की मिठास जिलेवासियों के जेहन में बसा हुआ है। कोरोनाकाल में भी यहाँ तरबूज का बिक्री निर्बाध जारी है। दरअसल किसानों ने बदलते वक्त के साथ अब तरबूज के बीजारोपण से लेकर इसके बेचने के तौर तरीके में भी बदलाव आया है। दो दशक पहले तक आसपास विभिन्न क्षेत्र के सिर्फ खुदरा विक्रेता तरबूज ले जाते थे। दो दशक पहले तक सिर्फ जिला के फल मंडी सहित विभिन्न क्षेत्र के खुदरा विक्रेता ले जाते थे।

अब मोहनपुर गांव में ही एसएच 55 के किनारे समानन्तर तीन किमी तक दर्जनों अस्थाई फल के काउंटर पर तरबूज सजते हैं। गांव के व अगल बगल के क्षेत्र के व्यवसायी यहां से खुदरा व थोक बिक्री करते है। जिस कारण हाल के कुछ सालों से मोहनपुर का तरबूज एसएच 55 से गुजरने बाले जिला के लोग सहित समस्तीपुर , दरभंगा , मधुबनी के लोग भी खरीद कर घर ले जाते है । जिससे नेपाल बॉर्डर तक लोगों को आनंदित करता है।

तरबूज किसानों का व्यापार हुआ सुगम और लाभदायक : मोहनपुर के किसान बताते हैं करीब 20 साल पहले तक देशी तरबूज की उपज होती थी। जो एक दिन के बाद वासी हो जाता था। जिससे तरबूज के नगदी परिवर्तित होने में काफी दिक्कतें आती थी। बीते सालों में तरबूज की हाइब्रिड बीज आने के बाद फल को खेत से टूटने के बाद एक हफ्ते तक बेचा जा सकता है। काले और चितकबरी रंग का तरबूज औसतन अधिकतम 10 किग्रा का एक होता है। बेगूसराय फल मंडी रोसड़ा,बख़री, बेगूसराय , बलिया के बाजार से व्यापारी भी ले जाते हैं। बेचने में सहूलियत होती है। मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में भी करीब सौ बीघे की जमीन पर मोहनपुर में तरबूज की खेती की जाती थी । तरबूज के साथ पपीता और केला की फसल उगाकर मोहनपुर गांव आत्मनिर्भर हो गया है।

क्या कहते हैं गांव के उन्नत किसान लगातार 30 सालों से तरबूज की खेती करने वाले मोहनपुर के उन्नत किसान अरविंद सिंह ने बताया कि नगदी क्रॉप तरबूज की खेती 90 दिन में सम्पन्न हो जाती है। फरबरी मार्च में रोपनी के बाद मई में फसल तोड़नी खत्म हो जाती है। अच्छी उपज होने के बाद पचास हजार रुपये से प्रति एकड़ में बिकने की उम्मीद होती है। इस बीच फसल को लीलगाय , कौआ और कीड़ा मकोरा से बचाने हेतु चार बार स्प्रे किया जाता है। इस बार फसल कमजोर है। गाँव के एक अन्य प्रगतिशील किसान जगन्नाथ सिंह का कहना है कि तरबूज की फसल नगदी फसल है। मोहनपुर के किसानों की यह परंपरागत खेती है। यहां हमारे दादा के जमाने में भी तरबूज की खेती होती थी। 20 वीं सदी के अंत तक यहाँ उपजने बाला देशी तरबूज स्वास्थ्य के लिए अति लाभकारी माना जाता था ।