छलका दर्द : लॉक डाउन के बाद जिंदगी नये मोड़ पर आ गयी है, बंगलौर में कई रात तो खाना भी नसीब नहीं हुआ

बेगूसराय : लॉक डाउन खत्म होने के बाद जिंदगी नये मोर पर आकर खड़ी हो गयी है। इनमें से ज्यादातर लोगों के समक्ष रोजगार और भोजन की समस्या आन पड़ी है। लॉकडाउन के दौरान काम-धंधा बंद होने से परेशान प्रवासी कामगारों के आने-जाने का सिलसिला लगातार जारी है। इस वक्त देश के विकसित राज्यों से कामगारों का घर लौटना जारी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के अन्य राज्यों में रहकर काम करने बाले करीब 50 हजार प्रवासियों की जिले में घर वापसी हुई है।

हालांकि सरकार के द्वारा घर लौट रहे प्रवासियों के लिए रोजगार उपलब्ध करवाने को कई विभागों को रोजगार सृजन के आदेश दिए, आला अधिकारियों को नए रोजगार और स्वरोजगार के अवसर पैदा करने के लिए ब्लूप्रिंट बनाने के आदेश जारी किए गये हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा जरूरमन्दों को घर पर ही काम मिल सके । इस दैरान रोजगार सृजन के लिए मनरेगा को भी मृत संजीवनी मिल गयी। बिहार सरकार के अति महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन हरियाली समेत कई अभियान चल रहे हैं। अल्प मात्रा में श्रमवीरों को काम तो मिल गया लेकिन अभी भी अधिकांश श्रमिकों के हाथ पर हाथ धरे बैठने की सर्वे रिपोर्ट्स है।

सभी श्रमिकों को काम दिलाने के लिए सरकार एक्शन मोड में है, जिला प्रशासन ने भी तमाम विभागों को तथा कार्यकारी एजेंसियों को स्थानीय प्रवासी श्रमिकों को काम देने का निर्देश दिया है। इस कड़ी में शहर के कंकौल स्थित डीआरसीसी में हरेक सोमवार को रोजगार कैंप भी लगाए जाएंगे, प्राप्त जानकारी के मुताबिक कृषि विभाग समेत अन्य कई विभाग लोगों को स्वरोजगार के लिए भी प्रशिक्षित करने का अभियान शुरू कर चुके हैं। लाख कवायदों के बावजूद पलायन पर रोक लगना सम्भव नहीं दिखाई पर रहा है । क्योंकि बिते एक महीने में लग्जरी बसों में भर भर कामगारों के बाहर जाने की सिलसिला शुरू हो चुकी है।

गरीब कल्याण योजना के तहत 125 दिन मिलेगा रोजगार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हम श्रमिकों के समस्या को देखते हुए, आर्थिक हालत को देखते हुए गरीब कल्याण योजना शुरू किया है। इस योजना के क्रियान्वयन करने बाले जिले के लिस्ट में बेगूसराय का भी नाम है। जिससे कम से कम से कम 125 दिन काम मिल जाएगा। तब तक प्रवासियों को स्वाबलंबन से आत्मनिर्भर बनने के लिए अन्य उपाय ढूंढ लेंगे। बहुत लोग ऐसे भी है जो शहर में वर्षों से स्थापित काम धंधा छोर कर गांव लौट गए ।

उनके समक्ष स्थिति और भी गहरा हो चुका है। बंगलौर से लौटे अवधेश सहनी, लालू सहनी, बमबम सहनी आदि ने शनिवार को बताया कि हम लोग बिहार में काम की कमी रहने के कारण परदेस गए थे। वहां काम धंधा चल रहा था, किसी तरह कमाकर जी रहे थे, परिवार का भरण पोषण कर रहे थे। लेकिन लॉकडाउन ने तबाह कर दिया, काम धंधा बंद हो गया तो जीने लायक खाना मिलना भी मुश्किल हो गया, काफी जिल्लत की जिंदगी काटनी पड़ी। तीन महीने में सबकुछ तबाह हो गया, कई रातें तो ऐसी गुजरी जब भोजन भी नसीब नहीं हुआ, उसके बाद सरकार के कृपा से गांव आए हैं। अभी सदर अस्पताल में कोरोना की जांच कराने के बाद 10-20 दिन घर पर रहकर दर्द को भूलने का प्रयास करेंगे। परदेस में हुआ दुख गांव आकर कम हुआ, दिल को सुकून मिला है लेकिन शांति तब मिलेगी जब गांव में रोजगार या स्वरोजगार मिल जाएगा।