जयंती विशेष : आजादी के बाद बेगूसराय जिले के विकास में मुख्यमंत्री श्रीबाबू और कृषि मंत्री रामचरित्र बाबू का था महत्वपूर्ण योगदान

न्यूज डेस्क : बिहार भूषण रामचरित्र बाबू बेगूसराय जिले के बीहट गांव के मसनदपुर टोला के निवासी थे। उनका जन्म 6 जून 1885 ई में मुंगेर जिले के रामपुर गांव में अपने ननिहाल में हुआ था। वे अपनी माता पिता की 12वीं संतान थे। इससे पहले की 11 संतानें असमय काल कवलित होते गए। तो टोटके के ख्याल से इनके जन्म के समय इनकी माता को नैहर भेज दिया गया। जहां इनका जन्म हुआ और ये बिहार के सिंह साबित हुए। ये बिहार के बड़े नेता थे और 1926 में ग़ुलाम भारत में पहली बार मुंगेर पश्चिम से सिहर लेजिसलेटिव कौंसिल के सदस्य चुने गए।

तब से आजादी के बाद 1962,तक वे बिहार विधानमंडल के लगातार सदस्य रहे। वे 1946 से 1957 तक बिहार कैबिनेट के प्रथम सिंचाई मंत्री बने और रहे। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गांव के विद्यालय से उर्दू फारसी में लेकर कलकत्ता विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में प्रथम श्रेणी में डिग्री प्राप्त की। शिक्षा ग्रहण के पश्चात वे मुजफ्फरपुर स्थित ग्रियर्सन भूमिहार ब्राह्मण कालेज में रसायनशास्त्र के प्राध्यापक हो गए। वहां वे जे बी कृपलानी केआर मलकानी जेसे विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी के संपर्क में आकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।

ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और निर्भीक नेता के प्रतीक जब जगह जगह राष्ट्रीय विद्यालय खुलने लगे तो इन्होंने नौकरी छोड़कर समस्तीपुर में राष्ट्रीय विद्यालय के प्रधानाचार्य बन गए। वहां से फिर सदाकांत आश्रम चले गए। रामचरित्र बाबू बिहार के ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और निर्भीक नेता, विधायक, मंत्री माने जातै हैं। वे सीधे-सीधे गांधीवादी विचारधारा से ओतप्रोत नेता रहे। वे ऐसे विधायक थे जो 11 बजे समय पर सदन आ जाते और जबतक सदन चलता रहता तब तक बैठे रहते। मंत्री काल में भी इसका अनुपालन किया। वे 1926 में मुंगेर पश्चिम से बिहार लेजिस्लेटिव कौंसिल के निर्विरोध सदस्य निर्वाचित हुए। वे 1934 के भूकंप के समय मुंगेर जिला परिषद के अध्यक्ष थे और भूकंप पीड़ितों की मदद और काम में आगे रहे। बिहार के पढ़े-लिखे नेताओं में वे अव्वल थे। वे किसी बात को जब-तक नहीं मानते थे जब-तक उसे बुद्धि और विवेक की कसौटी पर कस नहीं लेते थे। तभी तो उनके मरने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री कृष्णवल्लभा सहाय ने उन्हें ओल्ड गार्ड आफ बिहार कहा।

आजादी के कुछ साल बाद ही चुने गए थे विधायक वे 1952और 1957 में तेघड़ा विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। 1957में कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति की वजह से टिकट नहीं दिया गया तो वे निर्दलीय चुनाव जीत गए। बेगूसराय जिले के औद्योगिक विकास करने और करवाने में डा श्रीकृष्ण सिंह के साथ इनका सबसे बड़ा योगदान है। बरौनी थर्मल, बरौनी डेयरी, सिमरिया पुल, रिफाइनरी आदि निर्माण में श्री बाबू के साथ इनकी भूमिका रही। काबर और उत्तर बेगूसराय से जलनिकास के लिए काबर बगरस नहर के निर्माण का श्रेय इन्हें है। बेगूसराय के जीडी कालेज सहित अन्य कालेज निर्माण में इनका योगदान सराहनीय रहा। 1965 में इनके मरणोपरांत मंझौल में इनकी याद में कालेज का निर्माण किया गया। वे बिहार के राजेन्द्र प्रसाद डाक्टर श्रीकृष्ण सिंह, अब्दुल बारी की श्रेणी के नेता और राष्ट्रनिर्माता थे।