काबर झील में विदेशी पक्षियों का अवैध शिकार जारी, दो दिन में पकड़े गए एक हजार से अधिक विदेशी पक्षी

न्यूज डेस्क , बेगूसराय : एशिया फेमस मीठे पानी के झील बेगूसराय में स्थित काबर को रामसर साइट में शामिल कर केंद्र सरकार ने इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान दिला दिया। रामसर साइट में शामिल किए जाने से आशा जगी थी कि अब यहां साइबेरिया समेत विभिन्न देशों से आने वाले प्रवासी पक्षी के शिकार पर रोक लग जाएगी। लेकिन पक्षियों के शिकार की संख्या तेजी से बढ़ गई है। नए साल 2021 के आगमन की खुशी में बिक्री के लिए यहां के शिकारियों ने बीते दो दिन के अंदर एक हजार से अधिक पक्षियों को पकड़ लिया है।

पकड़े गए लालसर, दिधौंच, सरायर, कारण, डुमरी, अधंग्गी, बोदइन एवं कोइरा आदि को बेगूसराय ही नहीं आसपास के कई जिलों में खुदरा व्यापारी और ग्राहकों को उपलब्ध कराया जा रहा है। लेकिन थाना की पुलिस और वन विभाग इस पर रोक लगाने में पूरी तरह से नाकाम है। सूत्रों की माने तो शिकारियों द्वारा थाना पुलिस और वन विभाग को प्रत्येक महीने तयशुदा रकम पहुंचा दी जाती है, जिसके कारण प्रवास पर आए विदेशी पक्षियों का शिकार धड़ल्ले से जारी है। पक्षियों के दुश्मन शिकारी भी फानी (पक्षियों के फंसाने वाला विशेष प्रकार का जाल) लगा कर पक्षियों को फंसा रहे हैं। काबर पर क्षेत्र के चारों ओर मंझौल ओपी क्षेत्र, चेरिया बरियारपुर थाना क्षेत्र, खोदावंदपुर थाना क्षेत्र, छौड़ाही ओपी क्षेत्र एवं गढ़पुरा थाना क्षेत्र में पांच सौ से अधिक शिकारी रोज पक्षियों की शिकारमाही में लगे हुए हैं। काबर परिक्षेत्र में विदेशी मेहमान पक्षियों के खरीदार बड़ी संख्या में आ रहे हैं।

अलग-अलग पक्षियों के अलग-अलग नाम तय किए गए हैं। काबर के विदेशी पक्षियों की डिमांड इतनी ज्यादा है कि लालसर दो हजार से पच्चीस सौ रुपए तक में बिक रहा है। इस संबंध में डीएम अरविन्द कुमार वर्मा का कहना है कि यह मामला संज्ञान में नहीं था। अब जानकारी मिली है, जांच कर दोषी के विरूद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी तथा पक्षियों के शिकार पर कड़ाई पूर्वक रोक लगाया जाएगा। उल्लेखनीय है कि एशिया में मीठे पानी के सबसे बड़े झील और बिहार के एकमात्र रामसर साइट काबर झील में कई वर्षों के बाद लबालब भरे पानी का असर विदेश तक देखा जा रहा है।

झील परिक्षेत्र में साइबेरियाई देशों, रुस, मंगोलिया, चीन समेत सात समुद्र पार के कई देशों से आने वाले मेहमान पक्षी ठंड बढ़ने के साथ ही काबर झील में अड्डा जमा चुके हैं। काबर का महालय, कोचालय, रजौड़ा डोव एवं बहोरा डोव, जरल्का, धरारी, मेशहा, धनफर, पटमारा, पइनपीवा, भरहा, दशरथरही, लरही, धनफर, भिलखरा, गुआवारी, सतावय डोव, सखीया डेरा एवं बोटमारा आदि बहियार पक्षियों के कलाकार से गूंज रहा है और तमाम जगहों पर रोज इसका शिकार भी जारी है। काबर में मौजूद विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधे और बड़े पैमाने पर हो रही धान की खेती इनके प्रजनन में भी सहायक सिद्ध होता है।