राजनीति की भोंडी रोटी सेकने से नहीं श्री बाबू जैसी इच्छाशक्ति से बदलेगी काबर की सूरत

बेगूसराय मंझौल : काबर टाल के मुद्दे को लेकर शासक दल भाजपा के नेताओं की पहलकदमी तेज हुई है.पिछले वर्ष राज्यसभा के सदस्य राकेश सिन्हा ने इस मुद्दे को सदन में उठाया था. तब मामले को उठाने को लेकर समस्या समाधान के प्रति लोगों की आशा जगी थी.अब विधान पार्षद रजनीश कुमार ने मुंगेर में प्रमंडलीय बैठक में मुख्यमंत्री से जल जीवन हरियाली योजना से इसके विकास करने की बात कही.

मुद्दा से अलग नेताओं के हवाई जानकारी और गलत व्याख्या का ही परिणाम है कि काबर टाल का मुद्दा 40 बरसों से अटका पडा है. आजादी बाद बिहार के चीफ मिनिस्टर डा. श्री कृष्ण सिंह ने इस समस्या की नब्ज को पहचाना था.प्रथम पंचवर्षीय योजना में ही इस इलाके के जलजमाव की समस्या को खत्म करने की बात हुई.1952 से55 के बीच तीन बरसों में ही काबर के मुहाने से बूढीगंडक नदी तक नहर निकाल कर इस इलाके की तकदीर बदल दी गई. जलप्लावित क्षेत्र खेती के लायक बन गए. जमीन की बिक्री बडे पैमाने पर हुई. तीन बरस में ही योजना सफल हुई.

अब 1980 का दशक.बिहार सरकार और जिला प्रशासन ने गजट के माध्यम से खेती लायक जमीन को भी पक्षी विहार की सीमा में बांध दिया.30 बरस से ज्यादा का षमय गुजर गया. बिहार में कांग्रेस, कथित सामाजिक न्याय, भाजपा और सुशासन की सरकार बदलती बनती रही. काबर की योजना मुंह चिढाती रही. मुख्यमंत्री बदलते रहे.कहां श्री बाबू ने तीन बरस में योजना बना ,उसपर काम कर ,उसे पूरी कर इलाके की तकदीर बदल दी थी.कहां आज की सरकारें.

अब बात आज के नेताओं के लिए. काबर की समस्या वहां पानी जमाकर खेती लायक जमीन को डुबोकर रखने की नहीं होनी चाहिए. इसको योजना बद्ध विकास की जरूरत है.. काबर की जमीन के स्वामित्व विवाद से है.किसान की जमीन उसके जीवन यापन से लेकर मान सम्मान से जुडा है.सरकारी अधिकारी ने पक्षी विहार के गजट में इतनी भूमि डाल दी है कि उसका निबटारा सदियों में संभव नहीं है.

काबर के पर्यावरण बचाने,वहां के पानी,पक्षी,पेड की चिन्ता से हमारे जैसे लोग चार दशक से जूझ रहे हैं . किसान तबाह हो गए. पलायन कर गए. मछुआरों ने दूसरा धंधा अपना लिया. काबर की समस्या के समाधान के लिए श्री बाबू जैसी इच्छा शक्ति चाहिए न कि राजनीति की भोंडी रोटी सेंकनेवाले.