बेगूसराय में मृतक को नहीं नसीब हुआ अंतिम संस्कार, समीर ने कोरोना संक्रमित शव को निजी जमीन दान की दफनाने को

डेस्क : देश इन दोनों कोरोना संकट की मार झेल रहा है। हर तरफ श्मशान घाट पर सिर्फ कोरोना के लाश ही लाश दिख रहे हैं। कहीं-कहीं तो शव जलाने के लिए श्मशान घाट की जगह कम पड़ रहे हैं। इसी बीच बेगूसराय जिले से एक मानवीय क्रूरता का चेहरा सामने आया है। जहां कुछ दबंगों द्वारा कोरोना संक्रमित शिक्षक के शव को श्मशान घाट पर दाह संस्कार करने से मना कर दिया। अगर समाज में किसी जीवित मानव को सम्मान मिले या ना मिले, परन्तु मरने में बाद हर किसी के शव को सम्मान किया जाता है। शव के आगे लोग नतमस्तक होते हैं। चाहे हिन्दू हों या मुसलमान। लाश जलाने की बात हो या दफनाने की। लेकिन जिले के खोदावंदपुर पंचायत के बजही गांव के मृत शिक्षक राजबंसी कुमार रजक की अंत्येष्टि क्रिया में लोगों का अमानवीय चेहरा सामने आया।

समाज के ठेकेदारों ने शव को तीन शमशान घाट घुमाया : आपको बता दें कि मृतक शिक्षक राजवंशी कोरोना से संक्रमित था। इसलिए समाज के ठेकेदारों ने उसकी लाश को अपने यहां के श्मशान में जलाने से रोक दिया। यहां तक कि दबंगों द्वारा एक श्मशान से दूसरे श्मशान फिर तीसरे श्मशान तक लाश को घुमाया गया। शोषित पीड़ित महादलित समुदाय से जुड़े मृतक के परिजनों को लगभग 10 घण्टे तक अंत्येष्टि क्रिया के लिए भटकना पड़ा।

अंत में मटिहानी के मुस्लिम युवक समीर आगे आया: कोरोना से मृत राजवंशी रजक की अन्त्येष्टि क्रिया में व्यवधान होता देख समीर देवदूत बनकर सामने आया। स्थानीय लोगों का कहना है कि विचार से नास्तिक समीर मानवता का असली पुजारी निकला। कभी भी मंदिर व मस्जिद के आगे सिर नहीं झुकाने वाला समीर सामंतवादी विचारधारा को नकार दिया। उसने मानव धर्म को सर्वोपरि मान शव का सम्मान किया। उसने अपनी निजी भूमि में शव को दफन करवाया। मृतक राजवंशी को शव को हिन्दू‌ रिती रिवाज से अंतिम संस्कार नहीं हो पाया अत: उसे दफना दिया गया। अग्नि संस्कार नहीं होने से मृतक के परिजन असन्तुष्ट हैं। स्थानीय प्रशासन इस मुद्दे पर मौन है।