बेगूसराय में मास्क उद्योग को आधार बना कर दिया, दर्जनों परिवार को रोजगार

डेस्क : कोरोना वैश्विक महामारी के कारण देश में उद्योग धंधे बंद पड़ गए , जिसके कारण लाखों की संख्या में कामगार बेरोजगार हो गए। लाखो बेरोजगार कामगार देश के अलग-अलग क्षेत्रों से अपने घर वापस आये । घर पर परिजनों के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना भी इनके लिए एक बड़ी समस्या बनकर सामने आ पड़ी । इसी समस्या को अपना आधार बनाकर के एक कामगार ने खुद के परिवार के साथ-साथ दर्जनों परिवारों को भी रोटी का जुगाड़ कर दिया ।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रेरणा ‘आपदा को अवसर में बदलेगें. रोजगार करने के बजाय रोजगार सृजन का अवसर तलाशेगें.’ उनके इस नारा में प्रवासी कामगार विजय की आंखें खोल दी. मरता तो क्या नहीं करता, इस कहावत को चरितार्थ करते हुए विजय ने गांव में ही अपना स्वरोजगार खड़ा करने का निर्णय लिया और उसने समय की मांग को देखते हुए मास्क निर्माण और उसका विपनन को अपने जीवन यापन का हथियार बनाया.

आखिर कौन है ये विजय कुमार और कैसे मिला इनको ये प्रेरणा विजय कुमार चौधरी खोदावंदपुर प्रखंड के मेघौल निवासी स्व. सूर्यदेव चौधरी का छोटा पुत्र है. इसके घर में विधवा मां के अलावे एक भाई और एक बहन है. असमय पिता के गुजर जाने से परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी विजय के कंधे पर आ गया.जिसके कारण परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए विजय दिल्ली चला गया. जहां किसी प्राइवेट फेक्ट्री में नाईट गार्ड का नौकरी करने लगा और किसी तरह अपने परिवार का भरण पोषण करने लगा. लेकिन कोरोना के कारण फेक्ट्री बंद हो जाने के कारण इनकी नौकरी चली गयी। जिसके कारण वो अपने घर वापस आ गया.यहाँ ना अपनी खेतीबाड़ी – ना रोजगार, घर में तो चूल्हा भी जलना मुश्किल हो गया था. लेकिन विजय ने हिम्मत नहीं हारा, तथा आपदा को अवसर में बदलने का संकल्प लिया. जिसके बाद उन्होंने मास्क निर्माण का कार्य शुरू किया । उन्होंने अपने घर पर पारस मास्क उद्योग के नाम से अपने उद्योग को शुरू किया तथा उसी से जो कुछ भी आमदनी होता उसी से अपने परिवार का भरण पोषण करने लगा ।

अपने उद्योग को किया लोकल से भोकल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लोकल को भोकल करने का नारा ने विजय की आंखें खोल दी. इसने मास्क निर्माण को वृहत पैमाने पर छोटे उधोग को विकसित करने का मन बना लिया , फिर क्या था । इसने अपने छोटे से उद्योग का निबंधन एमएसएमई से कराया, तब अपने परिजनों के अलावे गांव के एक दर्जन से अधिक महिलाओं को मास्क निर्माण से जोड़कर स्वयं विपनन के कार्य को देखने लगा, फिर दो दर्जन महिला और एक दर्जन प्रवासी कामगारों को इसने रोजगार दिया.अब दर्जनों ऐसे युवा अप्रवासी कामगार हैं, जो इस उद्योग में मास्क के विपनन का कार्य करते हैं. साइकिल, मोटरसाइकिल से गांव की गलियों एवं ग्रामीण बाजारों के दुकानदारों व पास पड़ोस के दुकानों में खुदरा व थौक मास्क बेचते हैं. इससे इन्हें भी पांच से छह हजार रुपये औसत आमदनी हो जाता है.विजय ने दूसरे अप्रवासी कामगारों से भी गांव में ही अपने कौशल और रुचि के अनुसार स्वरोजगार अपनाकर घर पर खुशी जीवन जीने तथा अपने प्रदेश बिहार को उन्नत बनाने का आग्रह किया।