बेगूसराय में सम्मान जनक सीट की तलाश में वामपंथी दल

डेस्क : कभी बेगूसराय जिले में सीटों को लेकर अपनी मर्जी चलाने और अपनी जीत दर्ज कराने वाले वामपंथियों को इस चुनाव में लालू तेजस्वी शरणम् की स्थिति बनी है। वे महागठबंधन के साथ समझौते में सम्मानजनक सीटें खोजने को लालायित हैं।कभी सिर्फ बेगूसराय जिले में पांच एमएलए देनेवाले वामपंथी को पूरे बिहार में पांच या आठ सीटें देने की बात चर्चा में है। कभी राज्य में सिर्फ सीपीआई के 35 विधायक चुने जाते थे। जब शायद वह किसी दल के समझौते में नहीं हुआ करती थी। लेकिन, पिछले विधानसभा चुनाव 2015 में उसे राज्यभर में एक भी सीट नहीं मिली।

जहां तक बेगूसराय जिले की बात है,वर्ष 1956 में जिले में हुए एक उपचुनाव में पूरे उत्तर भारत में पहली बार बेगूसराय से सीपीआई के विधायक चुने गए। उस समय चंद्रशेखर सिंह ने पहली बार इस सीट पर कब्जा जमाया। उसके बाद 1962 से बेगूसराय जिले में सीपीआई के विधायक चुनने का जो सिलसिला शुरू हूआ,वह वर्ष 2015 में शून्य पर आ गया। वर्ष 1967 में तीन, वर्ष 1969 में दो,वर्ष 1972 में तीन,वरष1977में तीन,वर्ष 1980 में तीन,वर्ष 1985 में तीन, वर्ष 1990 और 1995 में पांच , वर्ष 2000 में 2, वर्ष 2005में एक,वर्ष 2010 में उसके एक विधायक चुने गए।

वर्ष 2015 के चुनाव में सीपीआई या किसी अन्य वामपंथी दल का यहां से कोई उम्मीदवार नहीं चुना जा सका। पिछले विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों ने स्वंय का मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ा था। राज्य भर में सीपीआई और सीपीएम को एक भी सीट नहीं मिली। अलबत्ता भाकपा माले को कुछ सीटें नसीब हो गयी। आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर वामपंथी दलों का महागठबंधन में जाने का निर्णय हुआ है। वे राजद और कांग्रेस से सम्मानजनक सीटें मांग रहीं हैं। कांग्रेस और राजद उन्हें सम्मानजनक सीटों के आधार पर तीनों दल मिलाकर 20 से 25 सीटें देने को तैयार हैं। उनमें सीपीआई को 5 से 8 और सीपीएम को दो तथा माले को 10-12 ।अब देखना है कि इन क्रांतिकारी पार्टियों को कितनी सम्मानजनक सीटें मिल पातीं हैं। या इनका सम्मान कहां तक बचता है।