डेस्क : बेगूसराय जिले में पांच वर्ष के बाद विधानसभा चुनाव में सीपीआई की वापसी हो गई। पिछले 2015 के चुनाव में उसके एक भी एमएलए नहीं चुनाए थे । वर्ष 1962 से लगातार 2010 तक जिले में उसके विधायक चुनाते रहे थे। कभी जिले में वामपक्ष के पास सात में से पांच विधायकों की संख्या थी। लेकिन,2010 में सिर्फ बछवाड़ा क्षेत्र से उसके विधायक चुने गए थे। 2015 में वामदलों के सारे उम्मीदवार हार गए।
जातीय जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर वामपंथियों को इसबार लालू के बेटे का आसरा काम आया और जिले में उसको चार सीटें गठबंधन के तहत मिली। इसमें सीपीआई को बछवाड़ा, तेघड़ा और बखरी की सीटें तथा सीपीएम को मटिहानी की सीट मिली। सीपीआई ने तेघड़ा और बखरी की सीटें जीत लीं। मटिहानी में सीपीएम और बछवाड़ा में सीपीआई जीतते जीतते हार गयी। मटिहानी और बछवाड़ा में महागठबंधन के घटक दलों के वोटरों के बिखराव उसकी हार के कारण बने। सीपीआई को जिले में दो सीटों का फायदा हुआ और उसका जिले में पुनर्जन्म हो गया।
वामपंथियों के साथ समझौते का राजद को इस जिले में नुकसान हुआ। उसके पिछले साल जिले में तीन एमएलए चुने गए थे। इस बार उसके दो एमएलए ही चुने गए। कांग्रेस वाम के साथ रहने के बाद भी अपनी बेगूसराय की एकमात्र सीट नहीं बचा पायी। सीपीआई के दोनों एमएलए पहली बार विधानसभा के लिए चुने गए हैं। बखरी से सूर्यकांत पासवान युवा हैं और तेघड़ा के रामरतन सिंह बुजुर्ग। अब देखना है कि सीपीआई जिले में फिर से वजूद में आकर राजनीति को कितना प्रभावित कर पाती है।