डेस्क : कन्हैया कुमार सीपीआई छोड़कर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए हैं। कन्हैया कुमार बिहार के बेगूसराय जिले के हैं। बेगूसराय में भी उस गांव के जिसने आजादी बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को उत्तर भारत में पहला एमएलए दिया था। बेगूसराय बिहार में कम्युनिस्टों का सबसे बड़ा केन्द्र रहा है। संगठन, एमएलए, एमपी और अन्य जनप्रतिनिधि देने में जिले में यह पार्टी अव्वल रही है। आजादी आंदोलन के समय में ही तेलंगाना की तर्ज पर नावकोठी के जमींदार के खिलाफ सशस्त्र भूमि संघर्ष कर पार्टी इस जिले में अस्तित्व में आयी । कामरेड ब्रहमदेव शर्मा सरीखे नौजवान नेता हुए। अपने क्रांतिकारिता से वे 1946 के चुनाव में कांग्रेस को चुनौती देते खड़े हो गए। चुनाव में उनकी हार हुई।
लेकिन, तबसे अभी तक जिले में सीपीआई और कांग्रेस आई के बीच संसदीय चुनावों की टकराहट होती रही। एक ध्रुव पर कांग्रेस रही तो दूसरे ध्रुव पर हमेशा सीपीआई रही। यह इस जिले की राजनीतिक बनावट ही रही। पिछले कुछ दशकों में क्रम टूटा, लेकिन, दोनों पार्टियां इस जिले में कमजोर नहीं हुई। 1952 से लेकर 2019 तक के संसदीय और विधानसभाओं के चुनाव का जब ऐतिहासिक अध्ययन होगा तो ये बात स्वतस्फूर्त दिख जाती है। बेगूसराय में कम्युनिस्ट पार्टी अधिकांश नेताओं की प्रथम पाठशाला होती रही है। नेता दल भी छोड़ते रहे हैं। कन्हैया कुमार का उसमें कोई नया नाम नहीं है। खुद 1939 में भूमि संघर्ष चलानेवाले कामरेड ब्रह्मदेव ने दस बरस बाद ही 1949 में सीपीआई छोड़ दिया और सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। सीपीआई से विधायक और प्रमुख नेता रहे कई लोग भी समय समय पर आरोपों की झड़ी लगाते दल छोड़ते रहे। कुछ सफल हुए ,कुछ राजनीतिक बियावान में भटकते गुम होते चले गए। वर्ष 1976 में ऐसे ही एक नेता भोला सिंह हुए जिन्होंने सीपीआई छोड़कर कांग्रेस की सदस्यता लें ली।
वे बरसों विधायक , मंत्री, सांसद रहे । सीपीआई छोड़ने के बाद वो लगातार दल बदलते रहे। वे कहा करते थे मैंने नहीं जनता ही बदल जाती है। जिधर जनता रहती है मैं उधर मुड़ जाता हूं। वे सीपीआई, कांग्रेस आई,जद,राजद, भाजपा तक पहुंच गए। वर्ष 1980 में चेरियाबरियारपुर विधानसभा क्षेत्र से सीपीआई से विधायक हुए सुखदेव महतो 1990 में निर्दलीय होते कांग्रेस पार्टी में पहुंच गए और राजद से जदयू तक जाकर गुम हो गए। बखरी के तीन तीन बार सीपीआई से विधायक रहे रामविनोद पासवान लोजपा में शामिल होकर आज भी राजनीति में सक्रिय हैं। बछवाड़ा से विधायक रहे अयोध्या महतो, बरौनी से विधायक रहे शिवदानी सिंह आदि आदि की ऐसे नाम है जो सीपीआई छोड़कर दुसरी दुनिया में चले गए। कन्हैया कुमार और सीपीआई का रिश्ता अब टूट चुका है। सिद्धांत के भटकाव और निहित स्वार्थ के वर्तमान राजनीतिक दौर में अब बेगूसराय जिले की राजनीति में सीपीआई की घटती ताकत में कन्हैया ने एक बड़ा छेद जरूर कर दिया है।