डेस्क : कल्पवास मेले पर इस बार भी कोरोना महामारी की नजर लग गयी है। सिमरिया गंगा में 18 अक्तूबर से 19 नवंबर तक लगने वाला कार्तिक कल्पवास मेले का अयोजन इस साल भी नहीं होगा। कोरोना संक्रमण के चलते पिछले वर्ष भी सिमरिया घाट खाली ही रहा। साधु-संतों का कहना है कि सालों से चली आ रही सनातन संस्कृति की परंपरा कोरोना महामारी को भोग लग गया।
मालूम हो कि जिला प्रशासन के आदेश देने के उपरांत सिमरिया घाट के विभिन्न जगहों पर “कल्पवास मेला पूर्णतः बंद है” लिखा हुआ पोस्टर व बैनर लगाया गया है। मेला ना लगाए जाने की वजह से जो श्रद्धालुओं एक माह तक गंगा किनारे डेरा जमा कर आध्यात्मिकता में लीन थे उनमें काफी निराशा देखा गया है। एक समय में स्वर्ण भूमि के नाम से प्रसिद्ध बेगूसराय के सिमरिया में पावन गंगा नदी के किनारे सजने वाले एशिया के सबसे बड़े कल्पवास मेला स्थल पर भी सन्नाटा छाया हुआ है। श्रद्धालुओं में तो निराशा है ही साथ ही वहां के स्थानीय छोटे-मोटे दुकानदार भी मेला नहीं लगने से दुखी हैं।
निराश होकर लौट गये श्रद्धालु
मिथिला एवं मगध के तीर्थ स्थली गंगा धाम सिमरिया में सालों-साल से कार्तिक मास में कल्पवास करने की परंपरा चली आ रही है। इसको स्थानीय भाषा में मास करना भी कहते हैं। इस पावन संगम पर केवल मिथिलांचल के ही नहीं बल्कि बिहार के अन्य क्षेत्रों के लोग, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित नेपाल के काफी तादाद में श्रद्धालु गंगा किनारे एक माह रह कर कल्पवास करते थे।
परंतु इस वर्ष भी कोरोना संक्रमण की वजह से कल्पवास मेला लगने पर ग्रहण लग गया। प्रशासनिक प्रतिबंध लगाए जाने पर दूर-दराज से आए लोग निराश होकर वापस घर को लौट रहे हैं। महीने भर श्रद्धालुओं से भरा-पूरा रहने वाला सिमरिया कल्पवास इलाके में सन्नाटा पसरा हुआ है। मेले में दुकान लगा के घर चलाने वाले छोटे-छोटे दुकानदार जिनको एक साल तक इस मेले का इंतज़ार रहता है उनमें मायूसी छाया हुआ है।