विकट परिस्थिति में भी साईं की रसोई कैसे बनी बेगुसराय के लिये खास एक्सलूसिव इंटरव्यू

डेस्क :आज कोरोना जैसी महामारी के दौरान कई ऐसे लोग हैं जो इस वक्त भी धर्म की राजनीति कर रहे हैं। लेकिन वहीं दूसरी ओर बेगूसराय के “साईं की रसोई” अपने काम से यह साबित कर रहे कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता है। “क्योंकि कोई भूखा न सो जाए” इसी टैगलाइन के साथ यह संस्था लोगों की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है। “द् बेगूसराय” ने सोचा की आप इनके काम और इनकी शुरूआत की कहानी को जाने और उनसे प्रेरणा लें। पेश है साईं की रसोई के संस्थापक सदस्य और बिहार रत्न से सम्मानित अमित जायसवाल के साथ इंटरव्यू के कुछ अंश

“साईं की रसोई” का मुख्य काम क्या है?-जैसा कि हमारा टैगलाइन है “क्योंकि कोई भूखा न सो जाए” इसी के साथ हम बेगूसराय के हर जरूरतमंद लोगों की मदद करना चाहते हैं और करते भी हैं । हमारी कोशिश रहती है कि कोई जरूरतमंद छूट न जाए।

इस संस्था का गठन करने का आइडिया कैसे आया?हमारा प्रयास था कि बेगूसराय में भी एक ऐसी संस्था का गठन हो जिससे जरूरतमंद लोगों तक मदद पहुंच सके। किशन गुप्ता,नितेश रंजन,पंकज जी ,निखिल जी और मैं ;हमलोगों ने मिलकर ये संस्था का गठन करने का सोचा।

बेगूसराय में आप कोई भी जगह चुन सकते थे, लेकिन आपने सदर अस्पताल को ही क्यों चुना? कोई खास वजह?आपने ठीक कहा,शुरूआत में हम इसे महिला कॉलेज के पास खोलना चाह रहे थे। लेकिन फिर हमें लगा कि सदर अस्पताल ज्यादा सही रहेगा क्योंकि यहाँ बस जरूरतमंद लोग ही आते हैं। पैसे वाले लोग तो बड़े अस्पताल में दिखा लेते हैं। साथ ही अस्पताल एक ऐसी जगह पर है जहाँ की सड़क हर ओर के अस्पताल की ओर जाती है तो अगर उन लोगों को भी मदद महसूस होती है तो वो बेजिझक आते हैं।

क्या नीति होती है जब बिहार के बाहर के भी लोग आपसे मदद मांगते हैं ?इसके लिए हमने एक टेक्निकल टीम का गठन किया है। जिसका संचालन किशन जी कर रहे हैं। कई लोगों के हमें फोन आ रहे हैं कि वो बिहार सरकार की तरफ से मिलने वाली 1000 रूपये निकालने में असमर्थ हैं। इस टीम का काम है कि ये लोगों को बताये कि रूपये किस नियम से नियम से निकल सकते हैं। जिनके पास स्मार्टफोन नहीं होता है , हम उनसे उनकी डीटेल्स मांग उनकी मदद करते हैं। बिहार के बाहर के लोग के बारे में जब पता चलता है तो हम वहाँ के परिचित लोगों से उनकी जानकारी लेते हैं, उनके आधार कार्ड देखते हैं और जब हम श्योर हो जाते तब हमारी टीम मदद के लिए पहुंच जाती हैं। हम रोज सुबह-शाम 250-300 पका हुआ भोजन का पैकेट वितरण करते हैं। साथ ही 1000 से ज्यादा परिवार को रोज़ 7- 8 दिन को राशन भी मुहैया कराते हैं ।